भारत में चल रहे इस्तीफों के दौर 'द ग्रेट रेजिग्नेशन' (The Great Resignation) में कमी आने का कोई संकेत नहीं दिखा है और श्रमिकों की घटती संख्या भी ऐसी ही बनी रह सकती है। यह दावा वैश्कि रोजगार सेवा प्रदाता रैंडस्टैड एनवी (Randstad NV) की ओर से किए गए एक सर्वे में किया गया है। इसके अनुसार भारत में नौकरियां छोड़ने की दर और बढ़ी है।

यह शब्द 'द ग्रेट रेजिग्नेशन' पिछले साल लोकप्रिय हुआ था, जब बड़ी संख्या में लोगों के नौकरी छोड़ने के रुख में तेजी देखी गई थी। बेहतर अवसर की तलाश में बड़ी संख्या में लोग अपनी मौजूदा नौकरी छोड़ रहे थे। पिछले दो वर्षों की घटनाओं ने दुनिया भर के कर्मचारियों की भावनाओं को बदला है और अब वे स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए हैं।
सर्वे के अनुसार इन परिवर्तनों से कई लोगों ने महसूस किया है कि जीवन और काम में सफलता की कुंजी प्रसन्नता है। इसमें कहा गया है कि अब वो नियोक्ताओं को यह बताने के लिए तैयार हैं कि वह कैसा महसूस करते हैं। भारत में इस सर्वे में शामिल हुए 63 फीसदी लोगों ने कहा कि वह नौकरी करते हुए नाखुश रहने के स्थान पर बेरोजगार रहना पसंद करेंगे।
वहीं, 68 फीसदी से अधिक लोगों का कहना है कि अगर उनकी नौकरी की वजह से जीवन का आनंद लेने में समस्या आती है तो वह नौकरी छोड़ देंगे। लगभग 70 फीसदी लोगों ने माना है कि उनका निजी जीवन उनके ऑफिस के जीवन से अधिक महत्वपूर्ण है और 61 फीसदी ने कहा कि अगर पैसा महत्वपूर्ण न हो तो वह काम नहीं करना पसंद करेंगे।
रिपोर्ट के अनुसार 95 फीसदी लोगों ने काम के लचीले घंटों और 91 फीसदी ने कार्यस्थल को महत्वपूर्ण बताया है। लेकिन अधिकतर का कहना है कि वे मानते हैं कि उनके पास इस बात को चुनने की स्वतंत्रता नहीं है कि वह कहां काम करना चाहते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में हर पांच में से दो लोगों के पास अपने काम करने के घंटों पर नियंत्रण नहीं है।
दरअसल कोरोना वायरस महामारी के मामलों में कमी आने के साथ अब कंपनियां फिर अपने कर्मचारियों को ऑफिस से काम करने के लिए बुला रही हैं। हालांकि अभी भी कई कंपनियां वर्क फ्रॉम होम व्यवस्था चला रही हैं लेकिन माना जा रहा है कि यह भी अब कुछ दिन ही और चलेगा। ऑफिस आने की बाध्यता से भी कई लोग नौकरी छोड़ने का फैसला ले रहे हैं।