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लालकिला पर मनता था जश्न, होते थे, दंगल और भी बहुत कुछ…

इस उत्सव में ग्रामीण व दूरदराज की महिलाओं की भागीदारी भी गजब होती। वे भी पुरानी दिल्ली की ओर कूच करती। इनमें बुजुर्ग महिलाएं लालकिला पहुंच जाती तो बाकी जनाना पार्क (सुभाष पार्क के सामने पर्दा बाग) में रुक जाती। वहीं पर ही पूरा दिन बिताया जाता।

Photo by Nemichandra Hombannavar / Unsplash

भारत की पुरानी दिल्ली कई मायनों में ऐतिहासिक और अनूठी रही है। मुगलों ने यहीं से पूरे देश का राजकाज चलाया तो अंग्रेजों ने भी भारत पर कब्जा करने के बाद लाल किला से भारत को व्यवस्थित किया। आजादी मिलने के बाद भी पुरानी दिल्ली देश के लिए विशेष बनी हुई है, क्योंकि स्वतंत्रता दिवस पर यहीं पर स्थित लाल किला से सभी प्रधानमंत्री देश को लगातार संबोधित करते आ रहे हैं। आज हम आपको वो पुराना दौर याद दिलाते हैं, जब लालकिला पर आजादी का जश्न देखने के लिए लाखों लोग उमड़े चले आते थे। उस दौर में पुरानी दिल्ली में उत्सव का माहौल रहता था। मेले-ठेले आयोजित होते थे और रात तक लोग वहां पुरानी दिल्ली के कल्चर का आनंद उठाया करते थे। अब वो बात नहीं रही। बढ़ती सुरक्षा-व्यवस्था ने इस उत्सव को औपचारिक बना दिया है।

The Red Fort in Delhi, India.
पहले के वक्त में लोग लालकिला के अंदर भी पहुंच जाते थे। Photo by Alin Andersen / Unsplash

दिल्ली के बुजुर्गों से बात करो तो वे आजादी के शुरुआती सालों की पुरानी यादों में खो जाते हैं। उनकी बातें खासी विस्मय पैदा करती हैं कि उस समय लालकिला और आसपास आजादी के जश्न में देशभक्ति, कुछ करने की ललक और आजादी का गुमान भरा था। वे बताते हैं कि उस वक्त लालकिला के सामने सिर्फ चांदनी चौक था और जामा मस्जिद के आसपास न तो मीना बाजार था और न ही अन्य मार्केट। पूरा इलाका खुला था। न तो सुरक्षा की बंदिशें थी और न ही कोई खतरा। जहां देखो गांधी टोपी धारण किए हुए लोगों का हुजूम नजर आता।

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