यदि आप अपने परिवार के साथ स्वीडन में बसने की योजना बना रहे हैं, तो आपको स्वीडिश प्रवासन कानून ( माइग्रेशन कानून) के बारे में नई जानकारी ज़रूर ले लेनी चाहिए। स्वीडिश सरकार ने अपने पुराने माइग्रेशन कानून में बदलाव कर नया लागू किया है। नया कानून 20 जुलाई से प्रभावी हो चुका है।
नया कानून वर्ष 2016में पेश किए गए अस्थायी कानून की जगह ले रहा है। इस कानून के मुताबिक़ स्वीडन में स्थायी निवास (परमानेन्ट रेजिडेंस) के लिए कम से कम तीन साल तक देश में रहना ज़रूरी है। इसमें वे लोग भी शामिल होंगे जो डिपेंडेंट वीज़ा पर यहां रह रहे हैं। इन्हें पहले स्वीडन में रहने की अस्थायी अनुमति मिलेगी और फिर तमाम जांच और दस्तावेज़ों के सत्यापित होने के बाद उनके परमानेन्ट रेसीडेंट (पीआर) होने पर विचार किया जाएगा। यही नहीं आप्रवासियों को परमानेन्ट रेसीडेंट परमिट के लिए अब आर्थिक रूप से सक्षम होने और घर के आकार को भी तरजीह दी गई है। अब पीआर परमिट के आवेदन के पहले यह सुनिश्चित करना भी ज़रूरी होगा कि एक वयस्क आवेदनकर्ता की मासिक आय 8,287 स्वीडिश क्रोना है। हालाँकि यूरोपीय संघ और ईएए (European Economic Area ) देशों के नागरिकों को इस प्रावधान से छूट दी गई है।
स्वीडन में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की संख्या 50,000 से अधिक है। इसमें 35,000 भारतीय नागरिक हैं। यहाँ क़रीब 10 हजार भारतीय, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) में काम करते हैं। जबकि रिसर्च और उच्च शिक्षा के लिए भी यहां बड़ी संख्या में भारतीय छात्र आते हैं जो यहां बसने की इच्छा रखते हैं। वहीं आईटी कंपनियों में काम करने वाले ज़्यादातर भारतीयों को भी स्वीडन रहने के लिए एक बेहतर वैकल्पिक देश लगता है।