विशेष लेख: जंग के बीच अन्न पर 'आक्रमण'

रूस के एक फैसले ने दुनिया को हैरान कर दिया है। रूस उस समझौते से अलग हो गया है, जिसने यूक्रेन को दुनिया के अन्य हिस्सों में अनाज ले जाने की अनुमति दी थी। रूस से इस फैसले ने पूरी दुनिया को न केवल स्तब्ध कर दिया है बल्कि विकल्पों का महत्वपूर्ण सवाल भी खड़ा कर दिया है। खासकर गरीब क्षेत्रों के लिए, जहां लाखों लोग पहले से ही भूख और भुखमरी के कगार पर हैं।

जुलाई-अगस्त 2022 में संयुक्त राष्ट्र और तुर्की द्वारा लागू की गई काला सागर अनाज पहल के तहत यूक्रेन से लगभग 36 मिलियन टन खाद्य निर्यात किया जाना था। इसमे से लगभग 50 प्रतिशत विकासशील देशों के हिस्से का था। कुछ हलकों में यह धारणा है कि रूस के इस फैसले का प्रभाव बहुत अधिक नहीं होगा क्योंकि अनाज की पर्याप्तता है। विशेष रूप से गेहूं की। लेकिन तथ्य यह है कि आर्थिक रूप से वंचित लोग भोजन और ईंधन की ऊंची कीमतों से जूझ रहे हैं और पहले से ही हर तरह की किल्लत और भूख की पीड़ा महसूस कर रहे हैं। यूक्रेन और रूस गेहूं, जौ और अन्य खाद्य पदार्थों के शीर्ष आपूर्तिकर्ता हैं जो अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व के बाजारों में जाते हैं। अब यूक्रेन के काला सागर बंदरगाहों के आसपास नाकाबंदी और खनन जल की बिखरी हुई रिपोर्टों के कारण युद्धरत पक्षों में असहजता पैदा हो गई है और वे नौवहन (शिपिंग) पर हमले कर रहे हैं और तनाव बढ़ने के लिए दूसरे पक्ष को दोषी ठहरा रहे हैं।

अमेरिका ने अनुमान लगाया है कि रूस खुले समुद्र में जहाजों पर हमला करना शुरू कर सकता है और रूस का कहना है कि पानी के नीचे यूक्रेनी निशान वाली खदानें पहले ही मिल चुकी हैं। यह सब खूनखराबे के एक नए दौर की शुरुआत प्रतीत होता है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि मॉस्को ने यूक्रेन से बाहर और काला सागर बंदरगाहों के माध्यम से खाद्यान्न की आवाजाही पर रोक लगाने का फैसला क्यों किया। एक ओर यह रूसी कृषि बैंक के खिलाफ जारी प्रतिबंधों के साथ-साथ शिपिंग और बीमा कंपनियों पर दंडात्मक उपायों के कारण है, जिसने इसके निर्यात पर असर डाला है। और दूसरी ओर क्रीमिया में एक महत्वपूर्ण पुल पर हाल ही में यूक्रेनी हमले को भी एक तत्कालिक 'उकसावे' के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन आम तौर पर फरवरी 2022 में शुरू हुए संघर्ष में एक के बाद एक बढ़ते चरणों के तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

एक समय ऐसा भी था जब तनाव कम होने की आशा कमतर थी। तब अमेरिका और रूस की हथियार संबंधी घोषणाओं ने कीव और उसके सहयोगियों को जैसे को तैसा वाला एक स्पष्ट संदेश दिया। अब यह तो पता नहीं है कि यह पागलपन कब रुकेगा लेकिन इस समय एक ही बात समझ आ रही है कि किसी भी पक्ष के लिए कुंठा और जीत का भ्रम उन लोगों को और अधिक खतरे में डालने वाला होगा जो पहले से ही बीते 18 महीने से प्रताड़ना ढेल रहे हैं। बेहतर तो यही होगा कि इस समय कीव के साथ-साथ मॉस्को पर भी यह दबाव बनाया जाए कि दोनों देश इस टकराव को खत्म करें क्योंकि इसमें किसी की जीत होने वाली नहीं है।