Skip to content

विश्व फलक पर सियासत में बदलाव की आहट और चीन के मंसूबे

पहले खबर आई कि सऊदी अरब और ईरान अपने मतभेद भुलाने पर राजी हो गए हैं। सौजन्य रहा चीन का। फिर पता चला कि शी जिनपिंग रूस जा पहुंचे हैं। वहां उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों पर मजबूती का लेप लगाया। पुतिन के कांधे पर शी ने ऐसे समय हाथ रखा, जब वह यूक्रेन में खून बहाने को लेकर यत्र-तत्र आलोचनाएं झेल रहे हैं।

राजनीति के अंतरराष्ट्रीय पटल पर इन दिनों जो कूटनीतिक आक्रामकता दिखलाई पड़ रही है, उससे कुछ लोग हैरान हैं। चर्चा है कि क्या अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर कुछ बदलाव होने वाला है। सुर्खियों में है चीन और उसके राष्ट्रपति शी जिनपिंग। वही जिनपिंग, जिनकी सियासी प्लानिंग की परतें थोड़ी देर से खुलती हैं। पहले खबर आई कि सऊदी अरब और ईरान अपने मतभेद भुलाने पर राजी हो गए हैं। सौजन्य रहा चीन का। फिर पता चला कि शी जिनपिंग रूस जा पहुंचे हैं। वहां उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों पर मजबूती का लेप लगाया। पुतिन के कांधे पर शी ने ऐसे समय हाथ रखा, जब वह यूक्रेन में खून बहाने को लेकर यत्र-तत्र आलोचनाएं झेल रहे हैं। अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी जगत इस मसले पर पहले ही धीर-गंभीर है।

एशिया में बीते तीन हफ्ते से भारत का कूटनीतिक परिदृश्य भी हलचलों से भरा रहा है। इटली, जर्मनी, जापान और आस्ट्रेलिया के नेताओं की यात्रा में दिल्ली का राजनीतिक अमला व्यस्त रहा। भारत में इस साल सितंबर में G20 शिखर सम्मेलन होना है तो गतिविधियां जारी हैं। विदेश मंत्रियों की QUAD बैठकों का दौर है। ऐसे में जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा दिल्ली पहुंचे और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए 75 अरब डॉलर के कार्यक्रम की घोषणा कर दी। इसके बाद किशिदा चुपचाप यूक्रेन पहुंच गए। बीते कुछ समय से इस बात को लेकर आलोचनात्मक चर्चाएं चल ही रही थीं कि G7 नेताओं में किशिदा ही अकेले ऐसे हैं, जो कीव गए। कीव जाने के लिए किशिदा ने सुरक्षा की खातिर पोलैंड से ट्रेन पकड़ी थी।

मई में जापान G7 सम्मेलन की मेजबानी करने वाला है। सम्मेलन हिरोशिमा में होगा। कहा जा रहा है कि उस सम्मेलन में किशिदा सात उन नेताओं को भी आमंत्रित करने वाले हैं जो इस समूह में शामिल नहीं हैं। भारत को सम्मेलन का आमंत्रण मिल चुका है। लग रहा है कि दक्षिण कोरिया को विशेष तौर पर बुलाया जाएगा। और खबर यह भी है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की इस सम्मेलन में वर्चुअली शामिल होंगे। जब यह सम्मेलन खत्म हो जाएगा तो दुनिया की निगाहें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर होंगी जो जून या जुलाई में अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर आने वाले हैं। फिर सितंबर में दिल्ली में G20 सम्मेलन होना ही है। अब चाहे G7 सम्मेलन हो या फिर G20, दोनों में ही चर्चा का विषय रूस-यूक्रेन युद्ध रहने वाला है। अगर तब तक इस संकट का कोई समाधान नहीं निकला तो यह लाजिम भी है। लेकिन चीन ने इस संकट के लिए सैद्धांतिक रूप से यूक्रेन के सिर ही ठीकरा फोड़ा है। हालांकि इसकी अधिक जानकारी आम नहीं है।

अभी तो यही कहा जा रहा है कि चीन का प्लान रूस की अवधारणा के करीब है लेकिन वह यूक्रेन और पश्चिमी जगत के गले शायद ही उतरे। इसके अलावा अगर बीजिंग का तथाकथित प्रस्ताव ताइवान में अपने ही इरादों का खाका है या अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है तो उसे समर्थन नहीं मिलने वाला। लेकिन रूस और मध्य पूर्व में चीन की हालिया कूटनीतिक कदमताल एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के फिर से आकार लेने का स्पष्ट संकेत है। इस पर मोदी सरकार को सावधानीपूर्वक ध्यान देना होगा। चीन और पाकिस्तान का गठजोड़ दिल्ली को असहज करता रहा है। अब ड्रेगन ने मॉस्को को साधना चाहा है, मगर रियाद और तेहरान को अपने पाले में करना भारत के लिहाज से चिंता का एक पहलू अवश्य है। निस्संदेह चीन न केवल द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से बल्कि क्वाड और AUKUS (ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन व अमेरिका) के संदर्भ में भारत की अमेरिका से नजदीकियों पर जला-भुना रहता है। लेकिन शी जिनपिंगको यह सवाल तो खुद से ही करना होगा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इस सारी 'उत्तेजना और उत्साह' के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है?

Comments

Latest