...तो क्या अमेरिका में बड़ा चुनावी मुद्दा बनने जा रहा है घृणा अपराध!

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव में अभी साल भर बाकी है। और इस समय जो हालात हैं उन्हे देखते हुए लगता है कि इस बार घृणा अपराध एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनने जा रहा है। पिछले दिनों आई FBI की रिपोर्ट के आंकड़े गवाही देते हैं कि बीते साल घृणा अपराध में बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा घृणा अपराधों को राष्ट्रीय खतरे की प्राथमिकता में शामिल करना इस मसले के प्रति सरकार की गंभीरता को उजागर कर रहा है।

चुनाव से ठीक पहले सरकारी विभाग के इस खुलासे ने सरकार के कान खड़े कर दिये हैं। demo pic : X@ FBI

FBI की रिपोर्ट बताती है कि वैसे तो अमेरिका में अपराध का ग्राफ कम हुआ है लेकिव घृणा अपराधों में 7 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। चुनाव से ठीक पहले सरकारी विभाग के इस खुलासे ने सरकार के कान खड़े कर दिये हैं।

इसीलिए अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी ने समुदायों के खिलाफ आस्था आधारित घृणा और हिंसक चरमपंथी अपराधों पर नजर रखने के लिए एक घरेलू आतंकवाद इकाई का गठन कर दिया है। FBI के निदेशक क्रिस्टोफर रे आस्था-आधारित खतरे और चुनौती के प्रति सरकार को चेता चुके हैं।

घृणा अपराधों में बढ़ोतरी से अमेरिका के बहु-सांस्कृतिक सामाजिक तानेबाने को चुनौती मिली है जिसपर देश की तमाम पार्टियां गर्व करती रही हैं। अमेरिकावासी भी समावेशी समाज के पक्षधर रहे हैं। ऐसे में घृणा अपराध से जुड़ी घटनाओं-वारदातों का लगातार होना न सिर्फ अमेरिकी समाज को बल्कि प्रवासी और खास तौर से यहां बसे भारतीय समुदाय के लिए भी चिंता का विषय हैं।

अपराध किसी भी देश या समाज के लिए चुतौती है लेकिन धृणा अपराध सामाजिक-आर्थिक तानाबाना बिखरने की पूरी आशंका रहती है। देश की छवि पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ता है और किसी भी राजनीतिक दल के लिए सत्ता में आने या पाने के रास्ते में जवाबदेही से कतराने की स्थितियां खड़ी हो जाती हैं। चुनाव से ठीक पहले कोई भी सत्ताधारी दल इस तरह के हालात पर काबू पाने की कोशिश करेगा।

लेकिन घृणा अपराध अमेरिका के समाज के साथ ही राजनीतिक दलों के लिए भी एक बड़ी सियासी चुनौती है। सामाजिक रूप से सशक्त हो रहा भारतीय-अमेरिकी समुदाय अब एक बड़ी राजनीतिक ताकत बन चुका है और चुनावी नतीजों को बदलने की स्थिति में है। ऐसे में कोई पार्टी नहीं चाहेगी कि इस तबके से जुड़ी चिंताओं की उपेक्षा की जाए।

अलबत्ता, प्रवासी समुदाय के लिए यह फौरी राहत की बात हो सकती है कि इस बार के चुनावी माहौल में घृणा अपराध की बात हो रही है और सत्ता पाने की आकांक्षी हर पार्टी को इस चुनौती के प्रति अपनी प्रतिबद्धा और जवावदेही का वचन देगा होगा।