महिलाओं और बच्चों के लिए सिकुड़ती दुनिया

यह बेहद शर्म की बात है कि जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय दुनिया भर के देशों पर महिलाओं को स्वतंत्रता देने के लिए दबाव डाल रहा है जिसकी वे हकदार हैं, ऐसे समय में दुनिया की कुछ सत्ता बीते कुछ सालों में हुई प्रगति को छोड़कर पुरानी दुनिया में वापस जाने को आमादा हैं। उदाहरण के तौर पर अफगानिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में कुछ इन्हीं कारणों से बना हुआ है। 15 अगस्त 2021 को जब तालिबान सत्ता पर काबिज हुआ, तब से यह स्पष्ट हो गया कि अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों के लिए अब घर ही सब कुछ हो गया।

तालिबान ने महिलाओं के अपराधों के लिए सार्वजनिक तौर पर पीटना भी शुरू कर दिया है।

यह केवल महिलाओं के खुले में जाने की बात नहीं है बल्कि अफगानी बच्चियों को बुनियादी शैक्षिक अधिकारों से वंचित किए जाने का भी विषय है। उन्हें स्कूलों से बाहर किया जा रहा है। इस क्रूरता में यह भी दिखाई दिया है कि उच्च शिक्षा में छात्राओं के लिए कक्षाएं भी अलग कर दी गई हैं। छात्राओं को केवल महिला टीचरों द्वारा ही पढ़ाया जा रहा है।

ऐसे में यहां एक सवाल यह भी उठता है कि अगर बच्चियां व महिलाएं घर से बाहर ही नहीं निकल सकतीं तो उनका शिक्षा केंद्रों तक पहुंचना भी कहां से संभव है? तालिबान को दुनिया के कई राष्ट्रों द्वारा अलग-थलग कर दिया गया है। लेकिन जब महिलाओं और बच्चियों के प्राथमिक अधिकारों की बात आती है तो यहां ध्यान देना उतना ही जरूरी बन जाता है।

महिलाओं के प्रति अफगान को बदतर बनाने में तालिबान ने कोई कसर नहीं छोड़ी हुई है। पिछले कुछ दिनों में तालिबान ने अपराधों (हर तरह के अपराध) में लिप्त होने पर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से पीटने का चरम और घृणित कदम उठाया है। एक स्टेडियम के अंदर बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी के बीच महिलाओं की सार्वजनिक पिटाई वास्तव में एक अत्यधिक प्रतिगामी कदम है। हालांकि ऐसा लगता है कि तालिबान की क्रूरता के बीच अफगानी महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए और अधिक मुखर होने का मन बनाया हुआ है। जबकि यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि इसके भविष्य में उनके व उनके परिवार के ऊपर सजा के रूप में क्या परिणाम होंगे।

लेकिन अगर बात महिलाओं के अधिकारों की है तो अफगानिस्तान इन दिनों अकेला नहीं है। महिलाओं पर क्रूरता से कार्रवाई करने में ईरान भी इस वक्त पीछे नहीं है। भले ही तेहरान में अधिकारी अब कहते रहें कि सुरक्षा बलों को लाइन पर लाया गया है कि अब वे "नैतिकता" के लिहाज से सड़कों पर नहीं उतरेंगे। लेकिन यह बात तो स्पष्ट है कि नुकसान पहले ही हो चुका है। एक तथ्य यह भी है कि अफगानिस्तान की महिलाएं ईरान की महिलाओं के साथ एकजुटता व्यक्त कर रही हैं। वह एक ऐसे आंदोलन की बात करती हैं जो धीरे-धीरे एशिया, मध्य पूर्व और उससे आगे बढ़ रहा है।

अब यह आमतौर पर स्वीकृत तथ्य है कि संघर्ष में सबसे अधिक संकटग्रस्त व्यक्ति सैनिक नहीं बल्कि महिलाएं और बच्चे होते हैं। वास्तव में युद्ध क्षेत्रों से भागे हुए शरणार्थियों में भी असुरक्षित महिलाएं और बच्चियां हैं और इनके कई विशेष कारण भी हैं। आईएसआईएस और बोको हराम जैसे आतंकवादी संगठन खुले तौर पर महिलाओं और युवा लड़कियों को अपनी जरूरतों के लिए इन्हें परिवारों से अलग कर देते हैं। इनके क्रूर व्यवहार को संयुक्त राष्ट्र की कार्यात्मक एजेंसियों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा अच्छी तरह से उजागर भी किया गया है।

दूसरी ओर लोकतांत्रिक समाज है जो राष्ट्रपतियों, उपराष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, वरिष्ठ अधिकारियों आदि के रूप में महिलाओं की बढ़ती भूमिका पर गर्व करता है। साथ ही वे किसी न किसी बहाने अपने नजदीक समस्याओं से जूझ रही महिलाओं और बच्चियों से अपनी आंखें नहीं हटाता बल्कि आगे बढ़कर मदद करता है।