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सिएटल बनाएगा जातिगत भेदभाव पर कानून? क्षमा सावंत के प्रस्ताव पर क्या कहते हैं लोग

वाशिंगटन में सिएटल सिटी काउंसिल की सदस्य क्षमा सावंत के प्रस्तावित प्रस्ताव पर सार्वजनिक टिप्पणी देने के लिए 14 फरवरी को 155 से अधिक लोग इकट्ठे हुए। इस प्रस्ताव में जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध की मांग की गई है। अगर प्रस्ताव पारित हुआ तो इस तरह का कानून बनाने वाला सिएटल अमेरिका का पहला शहर होगा।

वाशिंगटन में सिएटल सिटी काउंसिल की सदस्य क्षमा सावंत के प्रस्तावित प्रस्ताव पर सार्वजनिक टिप्पणी देने के लिए 14 फरवरी को 155 से अधिक लोग इकट्ठे हुए। इस प्रस्ताव में जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध की मांग की गई है। अगर प्रस्ताव पारित हुआ तो इस तरह का कानून बनाने वाला सिएटल अमेरिका का पहला शहर होगा। सिटी काउंसिल में 20 फरवरी को इस पर मतदान होगा।

इस प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में सिटी काउंसिल को सैकड़ों पत्र मिले हैं। इनमें से अधिकांश पत्र भारतीय-अमेरिकियों ने लिखे हैं। पत्र लिखने वाले इस मुद्दे पर विभाजित हैं। प्रस्ताव के समर्थकों का कहना है कि जातिगत भेदभाव अब भी स्कूलों, यूनिवर्सिटी, कार्यस्थलों और यहां तक कि व्यक्तिगत संवाद में भी मौजूद है। आमतौर पर यह जातिगत भेदभाव भी भारतीय अमेरिकी करते हैं। यानी भेदभाव करने वाले और इसका शिकार होने वाले भारतीय-अमेरिकी ही हैं।

इस प्रस्ताव के विरोधियों का कहना है कि अमेरिका में जातिगत भेदभाव होता है मगर वर्तमान कानून इससे निपटने में सक्षम है। प्रस्ताव को लेकर जन-सामान्य की राय भी सामने आई। कई दलितों ने कार्यस्थल पर जातिगत भेदभाव का दावा किया है। कुछ ब्राह्मणों ने प्रस्ताव का सर्थन किया है। कई वक्ताओं ने कहा कि वह अमेरिका इसलिए आए थे कि यहां जातिगत भेदभाव के दंश से मुक्ति मिलेगी मगर उन्हें निराशा ही हाथ लगी।

कोएलिशन ऑफ बे एरिया हिंदूज ऑफ नॉर्थ अमेरिका की पुष्पिता प्रसाद ने न्यू इंडिया अब्रॉड से कहा कि सिएटल बेहद मिलनसार शहर है लेकिन यह प्रस्ताव लोगों के एक समूह को अलग कर देता है। यदि इस तरह का कानून पारित हुआ तो किसी भी मानवीय संघर्ष को भेदभाव का हथियार बनाया जा सकता है।

वहीं इक्वैलिटी लैब्स की कार्यकारी निदेशक थेनमोझी सौंद्राराजन ने कहा कि यह वक्त हमारा है। सिएटल देश का पहला शहर होगा जो भेदभाव का सामना करने पर कामगारों की वास्तव में रक्षा करेगा। उत्तरी अमेरिका की अम्बेडकर एसोसिएशन की सदस्य माया कांबले ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए दावा किया कि उन्हें भी अपनी जाति के कारण कार्यस्थल पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था।

हालांकि सैन फ्रांसिस्को की कंपनी में आईटी निदेशक एल्ड्रिन दीपक का नजरिया बिल्कुल अलग है। दीपक दलित हैं। बकौल दीपक, वह अमेरिका में 35 साल से रह रहे हैं लेकिन उनसे यह कभी नहीं पूछा गया कि आप किस जाति से ताल्लुक रखते हैं। उनका कहना है कि लोगों को यह कैसे पता चलेगा कि कौन दलित है और कौन नहीं। कोई सर्टिफिकेट तो नहीं बांट रहा।

वहीं हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन में कार्यकारी निदेशक सुहाग शुक्ला ने कहा कि अमेरिकी संविधान मूल रूप से नस्ल या राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव से सुरक्षा की गारंटी देता है। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ भारतवंशी लोग वहां जैसी राजनीति अमेरिका में कर रहे हैं और समुदायों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं।  

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