हमारे शरीर तथा पंचभूतात्मक ब्रह्मांड को संतुलित करने के लिए भी आवश्यक है यज्ञ

तीसरा रत्न - यज्ञ/अमेरिकी यात्रा की तैयारी-4

प्रायः हम अनेक प्राकृतिक घटनाओं की उपेक्षा कर देते हैं । जैसे कि सूर्य उदय व अस्त के पीछे की वास्तविक शक्ति, चन्द्रमा की कलाओं का प्रभाव, ऋतुओं के परिवर्तन, नक्षत्रों की संरचना तथा उनके प्रभाव के रहस्यों के बारे में हम कम सोचते हैं जबकि ब्रह्मांड में कुछ नियमित घटनाएं इस प्रकार की हैं जिन्हें देख कर भी हम देख नहीं पाते, “पश्यन्नपि न ददर्श एनम्।”

इस सौरमंडल में सूर्य के माध्यम से विगत 2 अरब वर्ष से नित्य ही जो प्रकाश व ऊर्जा प्रदान करने का महान यज्ञ हो रहा है, उस ओर हमारा ध्यान कम ही जाता है। जबकि यह एक आश्चर्यजनक घटना है “चित्रं देवानामुदगादनीकम्।"

हमें अग्नि की आश्चर्यजनक विद्या की टूटी हुई परम्परा को जोड़ना होगा।

इसी प्रकार हम यदि पंच महाभूतों के महत्व पर विचार करें तो पाएंगे कि बिना धरती के हम सहज रूप से कहांं टिकेंगे? बिना वायु जीवन कैसे चलेगा? आकाश बिन वाणी का क्या अर्थ? जल बिन जीवन कैसे संभव है और अग्नि के बिना जीवन की शक्ति, प्रकाश व गति क्यों न थमेगी? किंतु इन सबके संतुलन के लिए हम क्या यत्न करते या कर सकते हैं?

इन सभी भूतों के संतुलन के लिए जहां ईश्वर ने व्यवस्था की है वहीं मानव को भी महाभूतों के संतुलन का धर्म निभाना आवश्यक है। इन पंच महाभूतों में प्रथम एवं अग्रणी तत्व अग्नि है, जिसके अनेक रूप हैं। यह सूर्य में, बिजली में, प्रत्येक रूपात्मक तत्त्व में, प्राणियों के उदर तथा देह में व्याप्त है। विचक्षण (judiciousness), बुद्धिमान, पूर्ण अनुसंधाता वैदिकों अर्थात् आर्यों द्वारा इस अग्नि तत्व को सर्वप्रथम सर्वाधिक महत्व देना भी हमें इसके बारे में जानने के लिए प्रेरित करता है। इसके बारे में जानने के लिए तथा संसार के उपकार के लिए हमें अग्नि की आश्चर्यजनक विद्या की टूटी हुई परम्परा को जोड़ना होगा।

सभी भूतों के संतुलन के लिए जहाँ ईश्वर की ओर से व्यवस्था की गई है वहीं मानव को भी महाभूतों के संतुलन का धर्म निभाना आवश्यक है। 

यह अग्निदेव संसार के पूर्वज-आर्यों द्वारा प्रथम स्तुत किया गया था “अग्निमीळे पुरोहितम्।"  इसलिए कालांतर में हमारे पूर्वज वेद के आधार पर इसके सम्पूर्ण विज्ञान को जानते थे। वस्तुतः संपूर्ण सौरमंडल व ब्रह्मांड के अंदर होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के बारे में जितना ज्ञान हमारे पूर्वजों को था उसका शतांश भी अब शेष नहीं रहा।