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भारत के एक हाईकोर्ट का फैसला, विदेश में शिक्षा का अधिकार मौलिक नहीं

यह फैसला उस मामले में आया है जिसमें कानून के उल्लंघन के मामले में फंसे एक किशोर ने शिकागो के एक कॉलेज में संगीत की चार साल की पढ़ाई करने के लिए विदेश यात्रा करने की अनुमति मांगी थी। इससे पहले जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) और एक अतिरिक्त सेशंस जज ने भी उसकी अपील खारिज कर दी थी।

Photo by Aaron Burden / Unsplash

अंडरट्रायल के अधिकार या विदेश में उच्च शिक्षा को लेकर कानूनी संघर्ष में फंसे किशोर को लेकर चल रहे कानूनी विवाद को भारत के पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने खत्म कर दिया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यह न तो मौलिक अधिकार है और न ही वैधानिक।

न्यायाधीश पुरी ने कई फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा का अधिकार संविधान के आर्टिकल 21-ए के तहत केवल प्राइमरी और एलीमेंट्री शिक्षा के लिए है। 

न्यायाधीश जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विदेश यात्रा करने का अधिकार मूल्यवान है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक अभिन्न अंग होने के अलावा यह एक बुनियादी मानवाधिकार है। लेकिन इस तरह का अधिकार निरपेक्ष नहीं है।

बता दें कि यह फैसला उस मामले में आया है जिसमें कानून के उल्लंघन के मामले में फंसे एक किशोर ने शिकागो के एक कॉलेज में संगीत की चार साल की पढ़ाई करने के लिए विदेश यात्रा करने की अनुमति मांगी थी। इससे पहले जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) और एक अतिरिक्त सेशंस जज ने भी उसकी अपील खारिज कर दी थी।

न्यायाधीश पुरी ने कई फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा का अधिकार संविधान के आर्टिकल 21-ए के तहत केवल प्राइमरी और एलीमेंट्री शिक्षा के लिए है। तथ्यों को देखते हुए अदालत का मानना है कि याचिकाकर्ता के पास उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने का कोई मौलिक या वैधानिक अधिकार नहीं है।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता को कानून की ओर से स्थापित की गई प्रक्रियाओं के अनुसार विदेश यात्रा करने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। बता दें कि इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस राय पेश हुए थे।

इसके साथ ही न्यायमूर्ति पुरी ने आदेश को रद्द करने के बाद इसे नए सिरे से निर्णय के लिए वापस भेज दिया क्योंकि वह जेजे अधिनियम की विशेष रूप से धारा 90 और 91 की योजना के अनुरूप नहीं थे। सुनवाई के दौरान न्याय मित्र प्रीतिंदर सिंह अलूवालिया ने दलील दी थी कि अतिरिक्त सेशंस जज ने कानून के सेक्शन 90 और 91 के प्रावधानों को नजरअंदाज किया है।

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