विशेष लेखः वास्कोडिगामा 'सोने की चिड़िया' भारत को ढूंढ रहा था, क्यों ?

अमेरिका यात्रा - अंक 11

मनुष्य में ईश्वर की सुंदर प्रकृति को देखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। वह समुद्र, अंतरिक्ष, पर्वत, नदियों, जंगलों एवं देश-देशांतर में जाना चाहता है, किंतु जब वह विदेश गमन करने का मन बनाता है या उसे भेजा जाता है, तब उसके शिक्षा, संस्कार व आदेश उसे भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से भ्रमण करने के लिए प्रेरित करते हैं।

महत्व यात्रा का नहीं बल्कि यात्री की नीयत का है।

केवल भ्रमण का सुख लेने के लिए यात्रा करना अमीरों का शौक हो सकता है किंतु किसी एजेंडे के तहत प्रवास करना भिन्न बात है। वस्तुतः महत्व यात्रा का नहीं बल्कि यात्री की नीयत का है। कोई किसी को हानि पहुंचाने जाता है तो कोई लाभ!