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ऑस्ट्रेलिया में बढ़े भारतीय मूल का प्रतिनिधित्व, कोशिश में जुटी लिसा सिंह

लिसा अपने परिवार के बारे में बताती हैं कि उनके दादा राम सिंह 1960 से 1970 के बीच फिजी के सांसद रहे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ फिजी की आजादी लड़ी और अपने आंदोलन की सफलता के लिए भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से सहायता मांगी।

लिसा सिंह भारतीय मूल की पहली ऐसी शख्स हैं जो ऑस्ट्रेलिया की संसद में पहुंचीं। अगस्त 2010 के संघीय चुनाव में वह स्टेट ऑफ तस्मानिया से सिनेटर चुनी गईं थीं। इससे पहले वह 2006 से 2010 के बीच तस्मानिया विधानसभा की सदस्य थीं। राजनीति का संस्कार उन्हें विरासत में मिला है। उनके दादा फिजी के सांसद रह चुके हैं। लिसा सिंह अभी मेलबर्न विश्वविद्यालय में ऑस्ट्रेलिया इंडिया संस्थान की डायरेक्टर हैं। उनका परिवार भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ग्वालियर शहर का निवासी थी। अंग्रेज उनके पूर्वजों को गन्ने की खेती कराने के लिए फिजी लेकर गए थे।

लिसा सिंह का कहना है कि जब उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की संसद में प्रवेश किया तो यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वह भारतीय मूल की पहली शख्स हैं जो यहां तक पहुंची हैं। ऐसा तब है जब ऑस्ट्रेलिया में बड़ी तादाद में भारतीय मूल के लोग रहते हैं। इनकी आबादी करीब 7 लाख के करीब है। इनमें दूसरी और तीसरी पीढ़ी के कई लोग शामिल हैं। दो दशकों में भारतीय मूल के लोगों की संख्या ऑस्ट्रेलिया में तेजी से बढ़ी है। लिसा के मुताबिक ऐसे में मेरा मानना है कि ऑस्ट्रेलिया की संसद में भारतीय मूल के लोगों का प्रतिनिधित्व और बढ़ना चाहिए। मैंने इसकी शुरुआत की है। लोगों ने मुझे चुना क्योंकि वे ऑस्ट्रेलिया की संसद में विविधता चाहते थे।

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