पन्नू बनाम भारत-अमेरिका संबंध

वे सभी लोग जो यह सोचकर हर्षित रहते हैं कि भारत-अमेरिका संबंध एक बेहद आसान राह पर चलते हुए मजबूती की एक लंबी राह पकड़ सकते हैं, उनके लिए हाल ही में सामने आया अभियोग चौंकाने वाला रहा होगा। मैनहटन की एक अदालत ने एक भारतीय नागरिक पर अमेरिकी धरती पर दोहरे अमेरिकी-कनाडाई नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश रचने का आरोप लगाया है। इससे भी बुरी बात यह है कि अभियोग में आरोप लगाया गया है कि निखिल गुप्ता एक भारतीय सरकारी कर्मचारी के आदेश के तहत काम कर रहा था जो कथित तौर पर एक खुफिया एजेंसी से संबंधित था। अचानक तुलनाओं की होड़ मच गई। बीते सितंबर में ही कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपनी संसद में वैंकूवर में कनाडा के नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के कथित संबंधों का मुद्दा उठाया था। लेकिन बारीक नजर वालों ने दोनों मामलों के बीच अंतर देखा। और वह यह कि अमेरिका ने एक विशिष्ट अभियोग शुरू किया है जिसमें आरोप सूचीबद्ध हैं जबकि ट्रूडो आरोपों के घेरे में बयानबाजी कर रहे थे। अब ऐसे में यह कहना कि हालिया घटनाक्रम से द्विपक्षीय संबंध प्रभावित हुए हैं एक अतिशयोक्ति होगी। वाशिंगटन को कुछ उत्तरों की अपेक्षा है और नई दिल्ली को भी पूरे मामले की तह तक जाने की जरूरत है। भारत की ओर से पहले दिन से ही यह कहा गया है कि हत्या की साजिश जैसी कोई चीज भारत की नीति नहीं है और इस मामले की जड़ तक पहुंचने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर दी गई है। भारत के इस ऐलान के बाद भी बोलने वालों की जुबान चल रही है। इसमें दोराय नहीं कि पिछले कई दिनों में भारत और अमेरिका दोनों ने ही बयानबाजी के मोर्चे पर उल्लेखनीय संयम दिखाया है। नई दिल्ली की यात्रा पर अमेरिकी प्रधान उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जोनाथन फाइनर ने संक्षेप में ही सब कुछ कह दिया। फाइनर ने कहा कि भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में 'मतभेद' हैं मगर साथ ही इन्हें 'रचनात्मक' तरीके से संभालने की 'परिपक्वता' भी है। फाइनर और बाइडेन प्रशासन के अन्य लोग इस तथ्य से भली-भांति परिचित हैं कि पन्नू एक सिख अलगाववादी और भारत में एक नामित आतंकवादी है जो हाल के कुछ दिनों से शातिराना अंदाज में अपना मुंह चला रहा है। यहां एक साधारण सा सवाल है। और सवाल यह है कि यदि कोई अमेरिकी विरोधी भारत में बैठकर जहर उगलेगा, अमेरिकी वाणिज्यिक जेटलाइनरों को आसमान में उड़ाने और अमेरिकी राजनयिकों और वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों के सिर पर इनाम रखने की धमकी देगा तो क्या बाइडेन प्रशासन चुप बैठेगा? वाशिंगटन भारत पर टूट पड़ता। इससे भी बदतर अगर नई दिल्ली ने कहा होता कि स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के नाम पर कुछ भी नहीं किया जा सकता है। बेशक, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक लंबा सफर तय किया है और अपने साझा हितों को कभी-कभार होने वाली नोक-झोंक से कहीं आगे रखा है। लेकिन द्विपक्षीय संबंधों को दीर्घकालिक नजरिए से देखने पर वाशिंगटन और नई दिल्ली आतंकवाद के मसले पर कोई गलती नहीं कर सकते। राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश 2002 में साफ कर चुके हैं कि- यदि आप किसी आतंकवादी को पनाह देते हैं, यदि आप किसी आतंकवादी को खाना खिलाते हैं तो हम आपके साथ एक आतंकवादी की तरह व्यवहार करेंगे।