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भारतीय मूल के RNOR को आखिर क्यों बनाने पड़ रहे हैं स्थानीय ट्रस्ट

वर्तमान में केवल निवासी भारतीयों को अपनी विदेशी संपत्ति की जानकारी आयकर रिटर्न फॉर्म में देनी होती है। NRI और RNOR के लिए ऐसा करने की अभी जरूरत नहीं है।

विदेशों में रहने वाले कई कारोबारी परिवारों के प्रमुख और भारतीय मूल के व्यक्ति RNOR (निवासी लेकिन सामान्य निवासी नहीं) के टैग से बचने के लिए अपने धन, संपत्ति और आय पैदा करने वाली अन्य संपत्तियों को भारत के ट्रस्टों में रख रहे हैं। वे भारत में अधिक समय बिताते हैं और इस डर से परेशान हैं कि सरकार आने वाले समय में कानून में बदलाव कर सकती है ताकि वो दुनिया भर में अपनी संपत्ति का खुलासा कर सकें।

जानकारी के अनुसार दो साल पहले निवास नियम में बदलाव के बाद अमेरिका, अफ्रीका और यूनाइटेड किंगडम के कम से कम 10 भारतीय परिवारों ने भारत में अपरिवर्तनीय और विवेकाधीन ट्रस्ट स्थापित किए हैं। बता दें कि RNOR की स्थिति एक अनिवासी भारतीय के बीच होती है जो देश में 181 दिनों से अधिक समय तक रहता है और एक नियमित निवासी भारतीय है।

वर्तमान में केवल निवासी भारतीयों को अपनी विदेशी संपत्ति की जानकारी आयकर रिटर्न फॉर्म में देनी होती है। 

नए कानून के तहत अगर कोई अनिवासी भारत का दौरा करता है और 120 दिनों से अधिक (लेकिन 182 दिनों से कम) समय तक वहां रहता है और उसकी भारत में संपत्ति से आय 15 लाख रुपये या उससे अधिक है तो उसे RNOR माना जाता है। ऐसे व्यक्ति को एक निवासी भारतीय के तौर पर अधिक कर देना पड़ता है। जबकि एनआरआई (अनिवासी भारतीय) को इसके मुकाबले कम कर्ज का भुगतान करना होता है।

लेकिन कर से अधिक डर इस बात का है कि यह सभी विदेशी संपत्तियों को सामने लाने के लिए पहला कदम हो सकता है। वर्तमान में केवल निवासी भारतीयों को अपनी विदेशी संपत्ति की जानकारी आयकर रिटर्न फॉर्म में देनी होती है। NRI और RNOR के लिए ऐसा करने की अभी जरूरत नहीं है। लेकिन लोगों को डर है कि आने वाले समय में यह नियम बदल सकता है RNOR के लिए भी इसका प्रावधान किया जा सकता है।

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