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US में सियासत के अग्निपथ पर एक साहसी भारतीय-अमेरिकी

निक्की हेली ने 2024 की इस लड़ाई की हुंकार अप्रवासी होने के गर्वीले अहसास के साथ भरी है। निक्की हेली (51) दक्षिण कैरोलिना की दो बार गवर्नर रह चुकी हैं और संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत भी।

अमेरिका में राष्ट्रपति पद की सियासी जंग का डंका बज गया है। शिखर सियासत की इस पथरीली पिच पर एक भारतीय-अमेरिकी महिला ने तमाम तरह की अंतर्बाह्य चुनौतियों को जानते हुए अपनी दावेदारी का ऐलान कर दिया है। निक्की हेली ने 2024 की इस लड़ाई की हुंकार अप्रवासी होने के गर्वीले अहसास के साथ भरी है।

निक्की हेली (51) दक्षिण कैरोलिना की दो बार गवर्नर रह चुकी हैं और संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत भी। निक्की ने सत्ता प्रतिष्ठान के रूढ़िवादियों और चरमपंथियों के सामने ऐलान-ए-जंग की न केवल हिम्मत दिखाई है बल्कि ऐसे तमाम लोगों को साफ संदेश दिया है कि वह मैदान में उतर आई हैं और अडिग भी हैं। दौड़ में शामिल होने की घोषणा के वक्त जो वीडियो संदेश उन्होंने दिया, उसने साफ कर दिया कि वह राजनीति के पेशेवर अंदाज में किसी का भी मुकाबला करने के लिए तैयार हैं।

पहली पीढ़ी की भारतीय-अमेरिकी निक्की हेली ने न केवल पीढ़ीगत परिवर्तन पर जोर दिया बल्कि 75 वर्ष से अधिक उम्र के राजनेताओं के लिए अनिवार्य सियासी योग्यता का आईना भी दिखला दिया है। यह आईना ओवल ऑफिस में इस समय जमे सबसे उम्रदराज जोसफ (जो) बाइडेन के लिए तो है ही, निक्की के पूर्व बॉस और अमेरिका के राष्ट्रपति रहे चुके डोनाल्ड ट्रम्प के लिए भी है। गौरतलब है कि ट्रम्प एक बार फिर से ओवल यात्रा की मंशा जाहिर कर चुके हैं। दावेदारी की घोषणा करते हुए हेली ने कहा कि अमेरिका में मैं देखती हूं कि स्थायी राजनेता अंत में सेवानिवृत्त हो जाएंगे लेकिन हमारे जेहन में कांग्रेस के लिए समय-सीमाएं हैं और 75 वर्ष से अधिक उम्र के राजनेताओं के लिए अनिवार्य मानसिक योग्यता परीक्षण का विचार भी है।

व्हाइट हाउस का रास्ता निस्संदेह रूप से अग्निपथ है जिसे पार करने के लिए सबसे पहले रिपब्लिकन पार्टी का नामांकन जीतना होगा। ग्रैंड ओल्ड पार्टी से अभी भले ही दो दावेदारियां सामने आई हैं लेकिन उम्मीदवार बढ़ेंगे। ट्रम्प और हेली के अलावा कद्दावर संभावितों में फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डीसांटिस, पूर्व उपराष्ट्रपति माइक पेंस और सीनेटर रिक स्कॉट शामिल हैं। और यह अभी शुरुआत है। लेकिन हेली की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह एक अश्वेत महिला हैं और साथ ही एशियाई-अमेरिकी भी। व्हाइट हाउस के लिए अपनी दावेदारी के समय निक्की ने कहा कि हर दिन हमें बताया जाता है कि अमेरिका में खामियां हैं। व्यवस्था में सड़ांध है और समाज में नफरत। कुछ तो यहां तक ​​कहते हैं कि अमेरिका नस्लवादी है। सच से और दूर कुछ भी नहीं हो सकता। अमेरिकी लोग बेहतर जानते हैं। मेरे अप्रवासी माता-पिता भी सच से वाकिफ रहे हैं। निक्की के माता-पिता सिख हैं जो पंजाब से अमेरिका आकर बसे थे। हालांकि 1996 में अपनी शादी के वक्त उन्होंने धर्म-परिवर्तन कर लिया था, फिर भी उन्हे ताना मिलता रहा कि वह 'पूरी तरह से' ईसाई नहीं हैं। यकीनन तानों का यह भूत सियासत के घात-प्रतिघात भरे चुनावी मैदान में भी निक्की का पीछा करता रहेगा।

दक्षिण कैरोलिना के लोगों ने यह सब देखा और निक्की को दो बार गवर्नर चुना। अब उम्मीद है कि इस जंग के वक्त अमेरिका के लोग चुनाव प्रचार के दौरान उनका आधिकारिक ट्रैक रिकॉर्ड देखेंगे। मूल्यांकन इससे इतर भी होगा। भारतीय-अमेरिकी लोगों ने राजनीति के साथ ही अमेरिका के हर उस क्षेत्र में कदमताल की है जिसके बारे में सोचा जा सकता है। हो सकता है कि हेली को अपनी पार्टी में ही नामांकन के वक्त अन्य भारतीय-अमेरिकियों से चुनौती मिले। यह भी हो सकता है कि ग्रैंड ओल्ड पार्टी की अंतिम स्वीकृति के बावजूद उनके सामने उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस ही आ खड़ी हों। हालांकि ऐसा तब हो सकता है जब बाइडेन फिर से मुकाबले में न उतरें। वो दिन हवा हुए जब भारतीय-अमेरिकी केवल डेमोक्रेट्स को ही वोट देते थे। आज समुदाय के पास मजबूत रिपब्लिकन समर्थकों का वर्ग है। डेमोक्रेटिक पार्टी खुद उन मजबूत प्रगतिशील और स्वतंत्र मतदाताओं को लेकर चिंतित है जो स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर बदलाव लाते हैं। 5 नवंबर, 2024 का चुनाव निस्संदेह भविष्य को लेकर है और निक्की हेली निश्चित रूप से आगामी बहस-मुबाहिसों के लिए एक स्वस्थ राह की स्थापना करेंगी।

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