पिछले करीब 22 साल से न्यूजीलैंड में रहने वाले 45 साल के नरिंदरजीत सिंह दिव्यांग हैं। कमर से नीचे लकवाग्रस्त हैं। व्हीलचेयर से बंधे हैं। उन्हें भूलने की बीमारी भी है। लेकिन एक मामूली अपराध की वजह से इतने वर्षों तक एक देश में रहने के बावजूद उन्हें वापस भारत भेजा जा रहा है। आठ साल पहले मामूली हादसे को स्वीकार करने की वजह से उन्हें न्यूजीलैंड से निकाला जा रहा है। भारत में उनका कोई नहीं है। परिजन इसे मौत की सजा से भी बदतर बता रहे हैं। इस सजा के खिलाफ एक याचिका डाली गई है, जिसे भारतीय प्रवासी समुदाय का व्यापक समर्थन मिल रहा है।
नरिंदरजीत सिंह फिलहाल परिवार के साथ ऑकलैंड में रह रहे हैं। साल 2000 में अपने परिवार के साथ एक आगंतुक वीजा पर भारत से न्यूजीलैंड गए थे। इसके बाद उन्होंने न्यूजीलैंड में निवास के लिए आवेदन किया, जिसे स्वीकार लिया गया। दरअसल, 8 साल पहले उनकी कार पड़ोसी के वाहन से टकरा गई। गनीमत रही कि कोई हताहत नहीं हुआ।
अदालत में नरिंदरजीत ने अपनी मानसिक स्थिति के बारे में कोई रिपोर्ट सामने रखे बिना अपना अपराध स्वीकार कर लिया। लेकिन अपराध को स्वीकार करने की वजह से उनके सामने मुसीबत खड़ी हो गई। जून 2021 में उन्हें निर्वासन के कागजात थमा दिए गए। अब इस महीने के अंत में उन्हें वापस भारत भेजा जा रहा है।
लेकिन नरिंदर के सामने समस्या यह है कि भारत में उनका कोई परिवार नहीं है। उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें देखभाल की आवश्यकता है। उनके स्वास्थ्य पर नजर रखने वाली डॉक्टरों की टीम भी न्यूजीलैंड में ही है। अगर उन्हें इस हालत में भारत भेज दिया जाता है तो उनके लिए बड़ी समस्या हो जाएगी। न्यूजीलैंड में रहने वाले उनके परिवार को यह समझ नहीं आ रहा है कि भारत में वह जीवित कैसे रहेंगे। उनका कहना है कि निर्वासन का यह आदेश नरिंदरजीत के लिए मौत की सजा से भी बदतर है। परिजनों का कहना है कि यह नरिंदर के लिए ही दंड नहीं है, यह हमारे लिए भी मौत की सजा समान है।
उनके निर्वासन को रोकने के लिए एक याचिका के तौर पर अभियान शुरू किया गया है। इसे प्रवासी भारतीयों की तरफ से बहुत समर्थन मिल रहा है। याचिका में आव्रजन मंत्री क्रिस फाफोई से हस्तक्षेप करने और इस निर्वासन को रोकने का आग्रह किया गया है।
याचिका में कहा गया है के उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें जिस तरह की सहायता मिलनी चाहिए वह नहीं मिली है। उनकी विकलांगता को देखते हुए भारत में उनका जीवित रहना असंभव है। याचिका के समर्थन में एक शख्स का कहना है कि यह क्रूर, अनुचित और भेदभावपूर्ण है। एक दिव्यांग व्यक्ति के लिए ऐसी सजा देखकर मेरा दिल टूट जाता है। इससे दुनिया भर में यही संदेश जाएगा कि दिव्यांग लोगों के साथ न्यूजीलैंड में किस तरह का व्यवहार किया जा रहा है।