धर्म से जुड़ा पर्व नवरात्र, मन व शरीर को भी पवित्र रखता है, जानिए कैसे

भारत और उन देशों में जहां भारतीय हिंदू रहते हैं, वहां आजकल नवरात्र (शारदीय) की धूमधाम है। हिंदू धर्म में इस पर्व को लेकर अगाध श्रद्धा व विश्वास जुड़ा हुआ है। वैसे तो यह पर्व मां दुर्गा को समर्पित है और इस अवसर पर व्रत आदि रखने की प्रथा है। लेकिन यह व्रत क्यों रखे जाते हैं, इसके पीछे पूरी वैज्ञानिक और शरीर विज्ञान से जुड़ी सोच है। मौसम को आधार मानकर ही इस पर्व के कुछ निहितार्थ हैं जो धर्म से भी जुड़े हुए हैं और मन व शरीर को भी पवित्र रखने के लिए आवश्यक बन जाते हैं। इसीलिए भारतीयों में इस पर्व को लेकर बेहद श्रद्धाभाव रहता है।

नवरात्र की क्या है धार्मिक मान्यता?
भारत में नवरात्र (नौ रातें) का पर्व बहुत पुराने समय से मनाया जा रहा है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा का जन्म हुआ था और उन्हीं के कहने पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू वर्ष शुरू होता है। मान्यता यह भी है कि भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्‍म भी चैत्र नवरात्रि में ही हुआ था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से भी चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार नवरात्रि का आयोजन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के दौरान किया जाता है, जो मार्च और अप्रैल के बीच पड़ता है। महाराष्ट्र प्रदेश में नवरात्रि के पहले दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है, तो कश्मीर में इसे नवरेह (नवरोज़) कहा जाता है। विशेष बात यह है कि वसंत ऋतु इस पर्व को और अधिक आकर्षक व दिव्य बनाती है। हिंदू धर्म में नवरात्रि साधना और उपासना करने के सर्वश्रेष्ठ बताई जाती है। कहा जाता है कि सामान्य दिनों में किसी भी साधना में सिद्धि हासिल करने के लिए कम से कम 40 दिनों की आवश्यकता होती है। जबकि नवरात्रि में नौ दिन ही अनुष्ठान में सफलता हासिल करने के लिए पर्याप्त माने जाते हैं।

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा का जन्म हुआ था। Photo by Sonika Agarwal / Unsplash

ज्योतिष गणित और नवरात्र की परंपरा
भारत की ज्योतिष (पंचांग) परंपरा के अनुसार वर्ष भर में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ इन चार मासों में नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इनमें दो नवरात्रि गुप्त होती हैं और दो सामान्य होती हैं। गुप्त नवरात्रि में साधक महाविद्याओं के लिए खास साधना करते हैं। ये माघ और आषाढ़ मास में आती हैं। दो सामान्य नवरात्रि चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) व आश्विन मास (अक्टूबर-नवंबर) में आती हैं। इन दो नवरात्रि में सामान्य लोग भी देवी मां के लिए व्रत-उपवास, पूजा-पाठ कर सकते हैं। इस दौरान सूर्य का मेष राशि में प्रवेश होता है, सूर्य का यह राशि परिवर्तन हर राशि पर प्रभाव डालता है। इस प्रभाव का सामान्यकरण के लिए व्रत-उपवास शुरू किया गया। भारतीय वेदों और पुराणों में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व इएलिए कहा जाता है, क्योंकि इसे आत्म शुद्धि व मुक्ति प्राप्त करने का आधार माना गया है और हमारे चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। चैत्र नवरात्रि के दौरान कठिन साधना और कठिन व्रत का महत्व है, जबकि शारदीय नवरात्रि के दौरान सात्विक साधना, नृत्य, उत्सव आदि का आयोजन किया जाता है।

नवरात्रि के अंतिम दिन यानी नवें दिन रामनवमी का पर्व मनाया जाता है। Photo by Abhinav / Unsplash

भगवान राम से भी जुड़ी है नवरात्रि
चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन यानी नवें दिन रामनवमी का पर्व मनाया जाता है। भारतीय धार्मिक व सांस्कृतिक परंपरा के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म रामनवमी के दिन ही हुआ था। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का हिंदू धर्म में विशेष योगदान है। राम के व्यक्तित्व और कृतित्व को लेकर अनेक धार्मिक ग्रंथ लिखे गए, जिनका आज भी महत्व है। भारत में कहीं भी कोई धार्मिक आयोजन होता है तो वहां राम-कथा का वर्णन किसी न किसी रूप में जरूर होता है। विशेष बात यह है कि भी है कि शारदीय नवरात्र भी प्रभु राम से जुड़ा हुआ है। इस दिन उन्होंने रावण का वध किया था। वह 20 दिन बाद अयोध्या आए थे। उनके आने पर जबर्दस्त उत्सव व आनंद मनाया गया, जिसे दीवाली कहा जाता है। दूसरी ओर चैत्र नवरात्रि की साधना मानसिक रूप से मजबूत बनाती है और आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति करती है।

शरीर और मन की विचलन को रोकता है नवरात्र का पर्व। Photo by Jared Rice / Unsplash

मन व शरीर से इसलिए नाता है नवरात्र का
ये दोनों नवरात्र उस वक्त आते हैं जब ऋतुओं का संधिकाल होता है। चैत्र नवरात्र का आगमन तब होता है, जब सर्दी की समाप्ति के बाद वसंत ऋतु चल रहा होता है और गर्मी दस्तक देने वाली होती है। शारदीय नवरात्र तब आता है, जब वर्षाकाल समाप्त हो जाता है और सर्दी का आगमन शुरू होता है। जाने-माने योगाचार्य रमन स्वास्तिक के अनुसार अगर मानसिक रूप से बात करें तो जब ये ऋतुएं बदलती हैं तो मन में विचलन होता है, उसमें भटकाव आता है और दिमाग या ध्यान एकाग्र चित्त नहीं हो पाता। इसीलिए ऋषि-मुनियों ने इन पर्वों के दौरान मन की स्थिरता के लिए धार्मिक आयोजन, सत्संग-कीर्तन आदि का प्रावधान किया गया है। दूसरी ओर फूड एक्सपर्ट व न्यूट्रिशियन कंसलटेंट नीलांजना सिंह के अनुसार नवरात्र के दौरान मौसम में परिवर्तन बहुत ही बड़ा होता है, क्योंकि सर्दी के बाद गर्मी आती है और बारिश के बाद सर्दी का आगमन। मौसम में इस बदलाव के लिए शरीर अपने का ढालता है, जिससे उसकी पाचन व अन्य क्रियाएं सुस्त हो जाती हैं। इसलिए हलका भोजन खाना लाभकारी माना जाता है। तभी इस पर्व पर व्रत का प्रावधान कर दिया गया और बेहद हल्का-फुल्का भोजन खाने की परंपरा हुई।