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बैसाखी पर ऑस्ट्रेलियाई सांसद ने दी बधाई, बोले- सिखों ने बहुत कुछ दिया

सांसद क्रिस मींस ने कहा कि यह एक ऐसा उत्सव है जो परंपरा और समृद्धि को जोड़ता है। यह पर्व सिख समुदाय के लोगों के लिए बेहद खास होता है। बैसाखी के ही दिन साल 1699 में गुरु गोबिंद सिंह ने देश और आम नागरिकों की रक्षा के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी।

इस साल बैसाखी 14 अप्रैल गुरुवार को मनाई जाएगी। ऑस्ट्रेलिया में इस उत्सव को लेकर सिख समुदाय में काफी उत्साह है। वे पूरी उमंग से इस पर्व तैयारियों में जुटे हैं। इस मौके पर ऑस्ट्रेलिया में लेबर पार्टी के सांसद क्रिस मींस ने कहा कि न्यू साउथ वेल्स में सिख समुदाय को बधाई देते हुए मुझे खुशी हो रही है, क्योंकि वे लोग बैसाखी मनाने के लिए एक साथ आते हैं।

अपने एक संदेश में उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से यह त्योहार पंजाब क्षेत्र में फसल के समय की शुरुआत का प्रतीक है। यह अतीत के लिए धन्यवाद देने और आने वाले वर्ष को आशावाद के साथ देखने का समय है। यह एक ऐसा उत्सव है जो परंपरा और समृद्धि को जोड़ता है। उन्होंने कहा कि मैं कई दशकों में न्यू साउथ वेल्स में सिख समुदाय के योगदान को स्वीकार करता हूं। हालिया बाढ़ संकट के दौरान कई सिखों ने निस्वार्थ भाव से सेवा की। पार्टी की ओर से मैं आने वाले वर्ष के लिए ऑस्ट्रेलियाई सिख समुदाय को अपनी शुभकामनाएं देता हूं।

बैसाखी के ही दिन गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।

सुख-समृद्धि के इस पर्व  से धार्मिक मान्यताएं और सांस्कृतिक परंपराएं जुड़ी हुई हैं। यूं तो इस पर्व को पूरे भारत में स्थानीय परंपराओं के हिसाब से मनाया जाता है। लेकिन भारत के राज्य पंजाब, हरियाणा में इस उत्सव की बात ही निराली है। यह पर्व सिख समुदाय के लोगों के लिए बेहद खास होता है। बैसाखी के ही दिन साल 1699 में गुरु गोबिंद सिंह ने मुगलों के अत्याचार से देश की रक्षा के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसलिए भारत ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका कनाडा और यूके जैसे देशों में जहां भी सिख समुदाय की तादाद ज्यादा है, वहां भी इस पर्व की धूम देखने को मिलती है।

वैशाख माह में रबी (अक्टूबर-नवंबर) की फसल के पक कर तैयार होने की खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है। किसान अपनी फसल की कटाई के बाद इस त्योहार को खुशी के रूप में मनाते हैं। इस दिन लोग अपने मित्रों और रिश्तेदारों को बैसाखी पर्व की बधाइयां देते हैं और उत्तर भारत में कई जगह मेले भी लगते हैं। इस दिन को सिखों के नए साल के रूप में भी मनाया जाता है। बैसाखी को पोइला, बोइशाख, विशु, सतुआन और बिहू जैसे नामों से भी जाना जाता है।

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