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UN की अमीना का खुलासा, हॉलिवुड नहीं, 'यहां' बनती हैं ज्यादा फिल्में

दुनियाभर में बनाई जाने वाली फिल्मों के संबंध में भारतीय फिल्म उद्योग सबसे बड़ा है। भारत 20 से अधिक भाषाओं में हर साल 1,500-2,000 फिल्में बनाती है। भारतीय फिल्म उद्योग में बंगाली, मराठी, मलयालम, तेलुगु और तमिल भाषाओं समेत देशभर का सिनेमा शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद (फोटो : ट्विटर @LeadershipNGA)

‘अगर मैं आपसे पूछा जाए कि दुनिया की ज्यादातर फिल्में कहां बनती हैं, तो आप क्या जवाब देंगे’? संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने एक प्रतिष्ठित अमेरिकी विश्वविद्यालय टफ्ट्स यूनिवर्सिटी में स्नातक कक्षा को संबोधित करते हुए यही सवाल किया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मैं आपको जिम्मेदार नहीं ठहराती, अगर आपके दिमाग में हॉलीवुड आता है तो। इसमें आपका कोई दोष नहीं है।

अमीना ने अपने सवाल का खुद जवाब देते हुए कहा कि अगर आपका उत्तर हॉलीवुड है तो यह गलत है। उन्होंने बताया कि वह दूसरे स्थान पर भी नहीं है। पहले स्थान पर भारत का बॉलीवुड है। दूसरा नाइजीरिया में नॉलीवुड है। भारत के एक राज्य की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना के अनुसार दुनियाभर में बनाई जाने वाली फिल्मों के संबंध में भारतीय फिल्म उद्योग सबसे बड़ा है। भारत 20 से अधिक भाषाओं में हर साल 1,500-2,000 फिल्में बनाती है। भारतीय फिल्म उद्योग में बंगाली, मराठी, मलयालम, तेलुगु और तमिल भाषाओं समेत देशभर का सिनेमा शामिल है।

इसके बाद उन्होंने एक और सवाल छात्र-छात्राओं से पूछे। उन्होंने कहा, ‘अगर मैं आपसे पूछती हूं कि किस देश में संसद में सबसे अधिक महिलाएं हैं? तो जवाब स्वीडन नहीं है। सही जवाब रवांडा है और उसके बाद क्यूबा।’ उन्होंने कहा कि अगर 2020 में आपसे पूछा गया होता कि हम एक साल के भीतर कहां सबसे बड़ा संघर्ष छिड़ते देखेंगे तो आपमें से कितनों ने यूरोप कहा होता?

अमीना मोहम्मद ने कहा कि कहने का मतलब यह नहीं है कि दुनिया के बारे में जो कुछ भी आपने सोचा था वह गलत है। बल्कि यह कहना है कि आज की दुनिया आपकी सोच से कहीं अधिक जटिल, बहुआयामी, संपन्न और दिलचस्प है। उन्होंने ग्लोबल साउथ से उभर रहे रचनात्मक उद्योगों को पहचानने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिनके कलाकार, फिल्म निर्माता और सांस्कृतिक अग्रदूत न केवल अपनी अर्थव्यवस्थाओं में काफी योगदान दे रहे हैं, बल्कि सीमाओं को तोड़ रहे हैं। रूढ़ियों को चुनौती दे रहे हैं और अपने क्षेत्रों की धारणाओं को बदल रहे हैं।

उन्होंने छात्रों से अपने आसपास के लोगों को एक आंतरिक लेंस के माध्यम से समझने की कोशिश करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि समस्या यह है कि रूढ़ियां सिर्फ लोगों को देखने और न्याय करने के तरीके को विकृत नहीं करती हैं। वे पूरे राष्ट्रीयताओं, महाद्वीपों, यहां तक कि धर्मों के बारे में हमारे विचारों को विकृत कर सकते हैं।

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