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प्रीति पटेल या ऋषि सुनक बने प्रधानमंत्री तो 'अंग्रेजों' को कोई आपत्ति नहीं!

भारतीय मूल के दो कैबिनेट मंत्री पीएम पद की दौड़ में सबसे आगे चल रहे हैं। ये नेता ब्रिटिश राजकोष के चांसलर ऋषि सुनक और गृह मंत्री प्रीति पटेल हैं। सर्वे में पाया गया है कि 84 फीसदी ब्रिटिश नागरिक बोरिस जॉनसन के बाद एक जातीय अल्पसंख्यक समुदाय के शख्स को प्रधानमंत्री पद के लिए आसानी से स्वीकार करेंगे।

विविधता ने भले ही भारत और कई अन्य देशों में सांस्कृतिक युद्धों को जन्म दिया है लेकिन ब्रिटेन में इसे इसकी सबसे बड़ी संपत्ति और सांस्कृतिक संवर्धन का स्रोत माना जाता है। एक सर्वे के अनुसार तीन तिहाई ब्रिटिश नागरिकों का मानना है कि सामाजिक विविधता ब्रिटिश संस्कृति का हिस्सा है न कि खतरा।

सर्वे में पाया गया है कि 84 फीसदी ब्रिटिश नागरिक बोरिस जॉनसन के बाद एक जातीय अल्पसंख्यक समुदाय के शख्स को प्रधानमंत्री पद के लिए आसानी से स्वीकार करेंगे। भारतीय मूल के दो प्रख्यात कैबिनेट मंत्री इस पद के लिए दौड़ में सबसे आगे चल रहे हैं। ये नेता ब्रिटिश राजकोष के चांसलर ऋषि सुनक और गृह मंत्री प्रीति पटेल हैं।

जातीय संबंधों के साथ संबंधों के ऐसे हैं हालात

ब्रिटिश फ्यूचर ( British Future) नामक थिंक टैंक की ओर से कराए गए इस सर्वे में कहा गया है कि हमारे समाज की विविधता एक तय तथ्य है। इस दशक में इस बात पर बहस की जरूरत है कि ऐसा क्या किया जाना चाहिए जिससे हर पंथ और रंग के ब्रिटिश नागरिकों के साथ निष्पक्ष रूप से लाभ मिल सके।

हालांकि घास पूरी तरह से हरी नहीं है। इस सर्वे में शामिल हुए लोगों में से आधे से कम लोगों ने कहा कि पिछले 10 वर्षों से अधिक समय में विभिन्न जातीय समूहों के साथ संबंध बेहतर हुए हैं। कई लोगों को भय है कि आने वाले वर्षों में स्थिति और खराब हो सकती है। ऐसा आर्थिक दबाव और सामाजिक अशांति के चलते हो सकता है।

लेकिन ब्रिटेन के पुलिस बलों की स्थिति अलग है

लेकिन इसी बीच ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रिटेन की पुलिस से विविधता का विचार दूर हो गया है। ताजा आंकड़ों के अनुसार इंग्लैंड और वेल्स के 43 पुलिस बलों में से लगभग एक तिहाई में शीर्ष चार वरिष्ठ पदों पर एक भी अश्वेत अधिकारी कभी भी नहीं रहा है।

2007 में रिकॉर्ड दर्ज करने की शुरुआत होने के बाद से 19 पुलिस बलों में कभी कोई अश्वेत चीफ इंस्पेक्टर, सुपरिटेंडेंट, चीफ सुपरिटेंडेंट या चीफ ऑफिसर नहीं रहा है। इसके अलावा एक तिहाई से अधिक बलों में समान पदों पर कभी कोई एशियाई अधिकारी नहीं रहा है।

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