मध्यमहेश्वर मंदिर का अद्भुत दृश्य देख मन रोमांच व श्रद्धा से भर जाएगा
भारत की देवभूमि उत्तराखंड राज्य। एक ऐसी जगह जहां देवताओं का वास माना जाता है। अपनी इसी गरिमा और महिमा के कारण यह भारत के सबसे सम्मानित राज्यों में से एक है। शक्तिशाली हिमालय की चोटियों में स्थापित यहां ऐसे कई स्थल हैं, जो रहस्यों और मिथकों से भरे हुए हैं। यहां का मध्यमहेश्वर मंदिर उत्तराखंड के श्रद्धेय पंच केदारों में से एक है।
#Madhyamaheshwar is a Hindu temple dedicated to Shiva. It is one of the Panch Kedar pilgrimage circuits, comprising five Shiva temples in the Garhwal region.
— The Himalyan Club 🇮🇳 (@HimalyanClub) June 15, 2023
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यह प्राचीन तीर्थ स्थल हिंदू मान्यताओं में अत्यंत धार्मिक महत्व का है। आध्यात्मिक खोज की तलाश में दुनिया भर के भक्तों को यह आकर्षित करता रहा है। इस तीर्थ स्थल की महत्ता के बारे में आप जरूर जानते होंगे। पंच केदार भगवान शिव को समर्पित पांच मंदिरों का एक समूह है। प्रत्येक मंदिर को भगवान के दिव्य रूप का एक हिस्सा माना जाता है। रुद्रप्रयाग जिले में मध्यमहेश्वर इस समूह में मध्य मंदिर है। 3497 मीटर (11,473 फीट) की ऊंचाई पर स्थित मंदिर के आसपास का परिदृश्य भी बहुत ही मनोरम है।
Madhyamaheshwar temple of Uttrakhand is another beautiful temple dedicated to lord shiva and part of panch kedar. It is believed to be built by pandavas. A navel-shaped Shiva-lingam, made of black stone, is enshrined in the sanctum.#SaveTemples#ReclaimTemples pic.twitter.com/yljfGcpRDa
— Save Temples (@TheSaveTemples) September 7, 2019
मध्यमहेश्वर की कथा महाकाव्य महाभारत से संबंधित है। ऐसा कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद पांडव अपने परिजनों कौरवों को मारने की वजह से बहुत ही पश्चाताप से भर गए थे। इससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शिव को खोज में एक यात्रा शुरू की।
कहा जाता है कि भगवान शिव ने इस बात को जानकर खुद को एक बैल के रूप में बदल दिया और पांडवों से बचने की कोशिश की। उन्होंने गढ़वाल क्षेत्र में शरण ली। जहां उन्होंने बाद में पांच भागों में विभाजित कर लिया। इनमें से प्रत्येक पंच केदार में से एक बन गया। माना जाता है कि बैल का कूबड़ मध्यमहेश्वर में प्रकट हुआ था, जिससे यह मध्य या मध्य केदार बन गया।
Supreme Power
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Divine Designs
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हालांकि मध्यमहेश्वर की यात्रा बहुत कठिन नहीं है। लेकिन तीर्थयात्रियों को ऊबड़-खाबड़ इलाकों से गुजरना पड़ता है। हरे-भरे घास के मैदानों, घने जंगलों और तेज धाराओं को पार करना पड़ता है। यह यात्रा सिर्फ एक शारीरिक चुनौती नहीं है, बल्कि किसी की भक्ति की परीक्षा भी है।
High altitude lake after #snowfall,
— Uttarakhand - Land Of Gods (@UttarakhandLOG) November 5, 2021
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📸:- MJ Rawat | 30th Oct, 2021
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मध्यमहेश्वर पहुंचने पर सफेद बर्फ की चोटियों से ढके मंदिर का अद्भुत दृश्य देख भक्तों का मन रोमांचित हो जाता है। यह मंदिर वास्तुकला, इसकी पत्थर की दीवारों और लकड़ी की नक्काशी के साथ हिमालयी सुंदरता को दर्शाती है। मंदिर के अंदर अर्धनारीश्वर रूप में भगवान शिव की एक चांदी की मूर्ति है। यह शिव और उनकी पत्नी पार्वती के मिलन का प्रतीक है।
पंच केदारों में मध्यमहेश्वर का विशिष्ट महत्व है। मंदिर क्षमा और मोचन से जुड़ा हुआ है, इसलिए तीर्थयात्रियों का मानना है कि इस पवित्र मंदिर की यात्रा उनके पापों को धो देती है। मध्यमहेश्वर हिमालय के हृदय में स्थित एक पवित्र मंदिर, आध्यात्मिक सौंदर्य का भी प्रतीक है।