केरल का कथकली ग्रामम, जानें कैसे सहेजकर रखी 200 साल पुरानी विरासत

भारत के दक्षिणी राज्य केरल में पम्पा नदी के तट पर एक छोटा सा गांव है अयरूर। अब यह गांव अयिरूर कथकली ग्रामम के नाम से मशहूर है। गांव की पहचान पारंपरिक नृत्य शैली कथकली से होती है। यहां के कलाकार हिंदू परंपराओं और पुराणों की कहानियों के साथ-साथ बाइबिल पर भी अपनी प्रस्तुति देते हैं।

आंखों और चेहरे की भाव-भंगिमाएं कथकली नृत्य शैली की खास पहचान है। Photo by Avin CP / Unsplash

केरल के पतनमट्टिता जिले का यह गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए भी पहचाना जाता है। गांव वालों ने अपनी कला की पहचान को जीवित रखने के लिए अपने गांव के नाम के साथ कथकली जोड़ दिया। इसके लिए उन्हें एक लंबे प्रयास से गुजरना पड़ा।

12 साल के लंबे प्रयास के बाद अयरूर गांव का नाम बदलकर अयिरूर कथकली ग्रामम हो गया। कथकली नृत्य शैली इस गांव की परंपरा से जुड़ी हुई है। गांव के महादेव मंदिर में आयोजित होने वाले वार्षिक उत्सव के दौरान सभी कलाकार कथकली प्रस्तुत करते हैं। उस मौके पर यहां पर्यटकों और दर्शकों की भारी भीड़ लगती है।

अयरूर गांव के कलाकारों ने लगभग 200 साल पुरानी कला विरासत को सहेज कर रखा है। हाथों की विभिन्न मुद्राएं, आंखों की भाव-भंगिमाएं कथकली की खास पहचान है। कथकली एक इस नृत्य नाटिका है। नृत्य के जरिए कलाकार पौराणिक कहानियों की प्रस्तुति देते हैं। कलाकारों के रंगीन पोशाक और चेहरे पर किया गया शृंगार इसकी खास पहचान है।

चिराकुझीयिल परिवार के शंकर पणिक्कर ने कथकली को इतना सहज बना दिया है कि यह कला आम लोगों के साथ सीधे जुड़ गई है। पुराने समय में कथकली की प्रस्तुति सिर्फ मंदिरों के भीतर की जाती थी। कब हर किसी को मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन अब कथकली मंदिरों से बाहर मंचों पर होने लगी। इससे यह कला और मशहूर हो गई।

बदलते दौर में पारंपरिक कलाएं विलुप्त होती जा रही है। ऐसे में अयिरूर गांव के समर्पित कलाकारों ने इसे जतन से संभाला और अपने जीवन से जोड़ लिया है। इस गांव के युवाओं के रगों में यह कला बसती है। तभी तो अयरूर गांव अयिरूर कथकली ग्रामम के नाम से मशहूर हो गया है।