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कौन थे बालेश्वर अग्रवाल, जिन्हें भारतीय राजदूत से अधिक सम्मान देते थे भारतीय प्रवासी

प्रवासी भारतीयों की नजरों में बालेश्वर ऐसे शख्स बन चुके थे कि जहां भारतीय प्रवासी लोग ज्यादा रहते थे, वहां एक भारतीय राजदूत से भी अधिक सम्मान उन्हें मिलता था।

पत्रकारिता जगत में आधुनिकीकरण की नींव रखने वाले बालेश्वर अग्रवाल

भारत और भारतीय प्रवासियों के बीच की दूरी को कम करने वाले, भारत में अंग्रेजी के ऊपर हिंदी पत्रकारिता को बल देने वाले और पत्रकारिता जगत को आधुनिक करने की नींव रखने वाले बालेश्वर अग्रवाल को कई देशों में भारतीय राजदूतों से भी ज्यादा सम्मान मिला करता था। आखिर कौन थे बालेश्वर अग्रवाल और कैसा था उनका निजी जीवन, चलिए आपको विस्तार से बताते हैं।

बालेश्वरजी भारत में हिंदी पत्रकारिता के चमकते सूर्य थे। जिनके मार्गदर्शन में अनेक पत्रकारों ने बाद में नाम कमाया और वे कई समाचार पत्रों के संपादक बन गए। वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद के अनुसार “उन्होंने राष्ट्रवादी चिंतनधारा से जुड़े विभिन्न भाषा-भाषी युवाओं की एक पूरी पौध को पल्लवित करते हुए आगे बढ़ाया। आगे चलकर उनमें से अनेक युवा अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, मराठी और अन्य भाषाओं के न केवल यशस्वी पत्रकार, बल्कि संपादक भी बनाए गए। डॉक्टर नंद किशोर त्रिखा, श्याम खोसला, अरविंद घोष, पीयूष कांति राय, राजनाथ सिंह, श्याम आचार्य, शिवकुमार गोयल, आलोक मेहता, रामबहादुर राय सहित दर्जनों नामों का उल्लेख किया जा सकता है।”

बालेश्वर अग्रवाल की निजी जिंदगी की बात करें तो उनका जन्म 17 जुलाई, 1921 में हुआ था। उड़ीसा के बालासोर में जन्मे बालेश्वर के पिता नारायण प्रसाद जेल अधीक्षक थे। उनकी मां का नाम प्रभादेवी था। उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बीएससी (इंजीनियरिंग) की डिग्री ली, उसके बाद डालमिया नगर की रोहतास इंडस्ट्री में काम करने लगे। पढ़ाई करते करते बालेश्वर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए और जीवन भर अविवाहित रहकर देश सेवा के लिए अपनी जिंदगी को समर्पित करने का फैसला किया। 1948 में जब संघ पर प्रतिबंध लगाया गया, तो बालेश्वर को भी जेल जाना पड़ा था।

आरएसएस ने साल 1951 में जब भारतीय भाषाओं में समाचार देने वाली ‘हिन्दुस्थान समाचार’ नाम की एक संस्था की शुरूआत की, तब जाकर बालेश्वर ने खुद को निखारने का काम किया। दादा साहेब आप्टे और नारायण राव तरटे जैसे आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारकों के साथ उन्होंने इस संस्था में रहते हुए संपादन और समाचार लिखने भी शुरू किया। हिन्दुस्थान समाचार को व्यापारिक संस्था की बजाय ‘सहकारी संस्था’ बनाया गया, जिससे यह देशी या विदेशी पूंजी के दबाव में ना आकर स्वतंत्र होकर काम कर सके। ये वो वक्त था, जब हर जगह अंग्रेजी के ही टेलीप्रिंटर हुआ करते थे, उस वक्त बालेश्वर ही थे जिन्होंने हिंदी के लिए टेलीप्रिंटर को लाने का काम किया।

बालेश्वर का विदेशों में रहे भारतीय प्रवासियों की ओर से झुकाव तब ज्यादा देखने को मिला जब देश में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने हिंदुस्थान समाचार की प्रिंटिंग पर रोक लगवा दी थी। बालेश्वर ने उस वक्त कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे भारत-नेपाल मैत्री संघ, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग न्यास की मदद से विदेशों में रह रहे भारतीय प्रवासियों से संपर्क करना शुरू कर दिया।

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