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भारत का एक संग्रहालय, जहां 2000 साल पुरानी ममी देखने आते हैं सैलानी

इस ऐतिहासिक इमारत का निर्माण महाराज राम सिंह के दौर में उस वक्त शुरू हुआ जब ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के बेटे और प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट एडवर्ड भारत आए थे। उनके दौरे की याद में शिल्पकार कर्नल सर स्विंटन जैकब ने महल का डिजाइन तैयार किया था।

19वीं शताब्दी में तैयार किया अल्बर्ट हॉल म्यूजियम।

शहर की घनी आबादी के बीचोंबीच एक 'महल' जिसमें 2000 साल से अधिक पुरानी एक ममी रहती है। जिसे कभी एक महाराजा टाउनहॉल का रूप देना चाहते थे लेकिन आज यह दुनियाभर की कलाकृतियों का घर है। यह इमारत भारत की पिंक सिटी जयपुर में मौजूद अल्बर्ट हॉल म्यूजियम है। आज जब दुनिया अंतरराष्ट्रीय म्यूजियम डे का जश्न मना रही है तो केंद्रीय संग्रहालय के इतिहास और  मुख्य आकर्षण पर बात करते हैं जो दुनियाभर के साल-भर हजारों पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है।

दो राजाओं के कार्यकाल में पूरा हुआ निर्माण

इस ऐतिहासिक इमारत का निर्माण महाराज राम सिंह के दौर में उस वक्त शुरू हुआ, जब ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के बेटे और प्रिंस ऑफ वेल्स अल्बर्ट एडवर्ड भारत आए थे। उनके दौरे की याद में शिल्पकार कर्नल सर स्विंटन जैकब ने महल का डिजाइन तैयार किया था। प्रिंस अल्बर्ट ने 1876 में इंडो-सैरासेनिक शैली में बनने जा रही इस महल की आधारशिला रखी थी। यह महाराज माधो सिंह द्वितीय के कार्यकाल में 1886 में जाकर पूरी हुई। उस दौर में इसे बनाने में पांच लाख रुपये खर्च हुए थे। बताया जाता है कि महाराजा राम सिंह इस महल को टाउनहॉल में तब्दील करना चाहते थे लेकिन महाराजा माधो सिंह द्वितीय ने इसे संग्रहालय में तब्दील करते हुए जनता को समर्पित कर दिया। संग्रहालय बनाने के पीछे का उद्देश्य राजस्थान की कला-संस्कृतियों से दुनिया को रूबरू कराना था।

रामनिवास बागान में मौजूद है संग्रहालय।

संग्रहालय में देखने के लिए बहुत कुछ है

संग्रहालय में प्रवेश करने के बाद आपको गलियारों में अलग-अलग शैली के भित्ति चित्र के दर्शन होंगे, जिनका ताल्लुक यूरोप, मिस्र, चीनी, ग्रीक और बोबीलोन से है। अब अगर इस संग्रहालय में देखने लायक कलाकृतियों की बात करें तो यहां पांच खास तरह की गैलरी है- कालीन गैलरी, क्ले आर्ट गैलरी, सिक्का गैलरी, आभूषण गैलरी, संगीत गैलरी। सिक्का गैलरी में गुप्त वंश, कुशान वंश, मुगल और ब्रिटिश काल के सिक्के रखे हुए हैं। अकबर, जहांगीर और औरंगजेब जैसे मुगल शासकों के सिक्कों को यहां सहेजा गया है। वहीं, आभूषणों की गैलरी में चांदी औऱ पीतल के आभूषण हैं जबकि संगीत गैलरी में शहनाई और पुंगी जैसे वाध्य यंत्र संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहे हैं।

संग्रहालय का निचला तल सैलानियों को विशेष रूप से आकर्षित करता है। आज सैलानी इस तल पर जिस गैलरी को देखते हैं, उसे 20वीं सदी में नया रूप दिया गया है। इसका उद्देश्य राजस्थान के सभी वर्गों और जनजातीयों के वस्त्रों और आभूषणों की अद्वितीयता के दर्शन कराना था। यहां मीना, बोपा, भील, गदोलिया लुहार और अन्य राजस्थानी जनजातियों की जीवन शैली को दिखाया गया है। इसके अलावा यह संग्रहालय धातु और लकड़ी से बनाई गई कलाकृतियां, कालीन, पत्थर व धातु की प्रतिमाओं और हथियारों का घर भी है। यहां राजस्थान के बूंदी, कोटा, किशनगढ़, उदयपुर और जयपुर के कला विद्यालयों से संग्रहित की गई कलाकृतियों को पर्यटकों के लिए प्रदर्शित किया गया है।

2000 साल से अधिक पुरानी ममी का भी घर है यह संग्रहालय। 

ममी के लिए बना है खास हिस्सा

पिंक सिटी का अल्बर्ट हॉल मिस्र से लाई गई ममी के कारण भी सैलानियों के बीच लोकप्रिय है। बताया जाता है कि यह कोई 2300 साल पुरानी एक महिला की ममी है। यहां ममी के रखरखाव पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। कुछ साल पहले मिस्र के विशेषज्ञों को बुलाकर इसके हालात की समीक्षा भी की गई थी। अंग्रेजों द्वारा संग्रहालय में लाई गई इस ममी को अब तक संभालकर रखा गया है।

संग्रहालय देखने का सबसे उचित समय

पर्यटक जयपुर हवाई, बस और ट्रेन तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए दिल्ली के हवाई अड्डे पर उतरकर जयपुर जाना सबसे उचित विकल्प है। दिल्ली से हर दिन कई विमान जयपुर के लिए उड़ान भरते हैं जबकि राष्ट्रीय राजधानी के अंतरराज्यीय बस अड्डे से जयपुर के लिए सीधी बस मिल जाती है। वहीं, भारतीय रेल भी जयपुर के लिए जनशताब्दी के रूप में आरामदायक सफर उपलब्ध कराती है।

जहां तक बात संग्रहालय में एंट्री की है तो अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को पहले 300 रुपये का टिकट खरीदना होगा। संग्रहालय सप्ताह के सात दिन सुबह 9 से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। 2 घंटे के ब्रेक के बाद शाम 7 बजे यह पर्यटकों के लिए फिर खोला जाता है और रात 10 बजे तक संग्रहालय के परिसर में घूमा जा सकता है।

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