क्या भारत अपने खोए हुए गौरव को वापस पाने के रास्ते पर चल रहा है?

इंद्रनील बसु-रे

अमेरिका में एस्पेन सुरक्षा मंच की बैठक में भारत के वर्तमान और भविष्य को लेकर व्यापक चर्चा हुई। इस दौरान वाइट हाउस के एशिया कोऑर्डिनेटर कर्ट कैंपबेल ने कहा कि अमेरिका-भारत के बीच दोस्ती सिर्फ सहयोगी बनने की इच्छा ही नहीं है, बल्कि इससे कहीं अधिक है।

हालांकि शिखर सम्मेलन में कर्ट ने कहा कि भारत केवल एक मूक साथी होने से संतुष्ट नहीं है। कर्ट के शब्दों में, नया भारत रणनीतिक और आर्थिक रूप से एक क्षेत्रीय और वैश्विक महाशक्ति बनने के लिए अपने साधनों के साथ आगे बढ़ा है। संयुक्त राज्य अमेरिका और उसका नेतृत्व जानता है कि भारत को एक गैर-बराबर सहयोगी की तरह समझने की तुलना में एक महाशक्ति के रूप में मान्यता देना अधिक उचित है। ऐसे में सवाल उठता है कि अमेरिका के मन में भारत के प्रति इस नजरिया के पीछे आखिर क्या वजह है?

आठ हजार साल के अपने दर्ज इतिहास में भारत हमेशा से एक शक्ति का केंद्र रहा है। Photo by Snowscat / Unsplash

दरअसल आठ हजार साल के अपने दर्ज इतिहास में भारत हमेशा से एक शक्ति का केंद्र रहा है। विज्ञान से लेकर सेना और वास्तुकला तक यह देश हमेशा सभी समकालीन सभ्यताओं से आगे रहा है। भारत पूरी दुनिया के लिए शिक्षा का बड़ा केंद्र रहा है। जब अंग्रेज भारत आए उस वक्त भारत का सकल घरेलू उत्पाद दुनिया के कुल सकल घरेलू उत्पाद का 25 से 35% के बीच था। लेकिन अंग्रेजों की लूट की वजह से 1947 में भारत को आजादी मिलने के वक्त यह गिरकर 2% हो गया। तमाम विदेशी आक्रमण और क्रूर ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था तबाह कर दी गई। अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक के शोध में अनुमान लगाया गया है कि अंग्रेजों ने 1765 से 1938 तक भारत में लगभग 45 लाख करोड़ रुपये की लूट की। यह राशि आज ब्रिटेन के कुल सालाना सकल घरेलू उत्पाद से 17 गुना अधिक है।

1947 में भारत की आजादी के बाद कई सरकारों ने देश को अपने पैरों पर वापस खड़े होने के लिए संघर्ष किया। चीनी आक्रमण, पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद और आक्रमण सहित तमाम झांझावातों से गुजरने के बावजूद भारत एक बढ़ती आर्थिक और सैन्य महाशक्ति की ओर अग्रसर रहा। संयुक्त राष्ट्र, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ (आसियान), जी -20 और विश्व व्यापार संगठन सहित अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत और अमेरिका के बीच बढ़ रहे सहयोग से भी भारत की प्रमुखता बहुत स्पष्ट रूप से स्थापित होती है। लेकिन जैसे-जैसे साझेदारी बढ़ी, अमेरिका और उसके सहयोगियों ने महसूस किया कि भारत को अब एक और सहयोगी के रूप में नहीं देखा जा सकता है। विश्व में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए भारत के नेतृत्व की आवश्यकता है।

आज अमेरिका के कई फैसले अमेरिका में भारतीय प्रवासियों द्वारा तैयार किए गए हैं। भारतीयों की पहली और दूसरी पीढ़ियों ने अमेरिकी राजनीतिक और शैक्षिक प्रतिष्ठान में अपने कद का विस्तार किया है। यह भारत की एक ताकत ही है कि तीन करोड़ से अधिक अमेरिकी योग का अभ्यास करते हैं। अमेरिका में योग अभ्यासियों की संख्या 4 वर्षों में 50 फीसदी से अधिक बढ़ गई। 2009 के प्यू फोरम ऑन रिलिजन एंड पब्लिक लाइफ सर्वेक्षण के अनुसार 24 फीसदी अमेरिकी पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। यह हिंदू धर्म की एक मुख्य अवधारणा है। इस तरह से देखा जाए तो अतीत में भी सभी देशों के बीच भारत की पहचान एक जिम्मेदार नेतृत्व के रूप में रही है। और यह एक बार फिर से होना तय है। ऐसे में भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों देशों के अच्छे लोगों के अथक प्रयास और कड़ी मेहनत की आवश्यकता है।

(इंद्रनील बसु-रे अमेरिकन अकादमी फॉर योगा इन मेडिसिन के मेंटर और संस्थापक हैं)