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अपनी सेना पर रूस से भी ज्यादा धन खर्च कर रहा है भारत, खरबों-अरबों का मसला है

साल 2021 में भारत का सैन्य खर्च बढ़ कर 76.6 अरब अमेरिकी डॉलर ( लगभग 5873 अरब 26 करोड़ 67 लाख रुपये) रहा। यह राशि साल 2020 के आंकड़ों के मुकाबले 0.9 फीसदी अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 की तुलना में साल 2021 में हुआ सैन्य खर्च 33 फीसदी अधिक रहा।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार साल 2021 में पूरी दुनिया का सैन्य खर्च अपने सर्वकालिक उच्चतम स्तर 2.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर ((लगभग 1610 खरब 88 अरब 90 करोड़ रुपये)) पर पहुंच गया। इसमें अपनी सेना पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाले शीर्ष तीन देश अमेरिका, चीन और भारत रहे। इसके बाद यूनाइटेड किंगडम और रूस हैं।

इंस्टीट्यूट की ओर से सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2021 में भारत का सैन्य खर्च बढ़ कर 76.6 अरब अमेरिकी डॉलर ( लगभग 5873 अरब 26 करोड़ 67 लाख रुपये) रहा। यह राशि साल 2020 के आंकड़ों के मुकाबले 0.9 फीसदी अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 की तुलना में साल 2021 में हुआ सैन्य खर्च 33 फीसदी अधिक रहा। बीते कुछ वर्षों ने भारत ने अपने रक्षा क्षेत्र को काफी मजबूत किया है।

भारत का पड़ोसी देश चीन सैन्य खर्च के मामले में दुनियाभर में दूसरे स्थान पर है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत का पड़ोसी देश चीन सैन्य खर्च के मामले में दुनियाभर में दूसरे स्थान पर है। साल 2021 में उसने अपनी सेना पर लगभग 293 अरब अमेरिकी (लगभग 224 खरब 65 अरब 62 करोड़ 85 लाख रुपये) डॉलर खर्च किए थे। साल 2020 के मुकाबले यह राशि 4.7 फीसदी और साल 2012 के मुकाबले 72 फीसदी अधिक है। भारत और चीन के बीच लंबे समय से पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध की स्थिति बनी हुई है।

भारत का बढ़ा सैन्य खर्च यह बताता है कि सरकार ने अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण और हथियारों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि स्वदेशी हथियार उद्योग को सशक्त बनाने के लिए भारत के साल 2021 के सैन्य बजट में पूंजी परिव्यय का 64 फीसदी हिस्सा देश में ही बनाए गए हथियारों की खरीद के लिए निर्धारित किया गया था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2021 में अपनी सेना पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाले शीर्ष पांच देश अमेरिका, चीन, भारत, यूनाइटेड किंगडम और रूस रहे। पूरी दुनिया में इस साल हुए सैन्य खर्च में इन पांच देशों की हिस्सेदारी 62 फीसदी रही। अकेले अमेरिका और चीन का ही हिस्सा 52 फीसदी रहा।

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