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मेडिकल लाइसेंस के लिए उत्तीर्ण नहीं हो पाते, फिर भी विदेश जाने वाले तीन गुना बढ़ गए भारतीय छात्र

पिछले पांच वर्षों में FMGE परीक्षा पास करने वालों का कुल आंकड़ा 15.82% रहा। इसमें खास यूक्रेन से स्नातक करने वालों की संख्या मात्र 17.22% रही। हालांकि फिर भी विदेश चिकित्सा का अध्ययन करने वाले भारतीयों में नाटकीय वृद्धि हो रही है।

Photo by Irwan iwe / Unsplash

यूक्रेन में युद्ध के बाद से भारतीय मेडिकल छात्रों की दुर्दशा और विदेशों में उनकी बढ़ती उपस्थिति पर काफी ध्यान केंद्रित हुआ है। विदेश में भारतीय छात्र पढ़ाई के लिए क्यों जाते हैं, यह एक अलग विषय है लेकिन पिछले पांच वर्षों में विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा यानी फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन (FMGE) के लिए बैठने वाले उम्मीदवारों की संख्या में तीन गुना वृद्धि देखी गई है। इसे आयोजित करने वाले नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन (NBE) के अनुसार परीक्षा देने वाले मेडिकल ग्रेजुएट्स की संख्या साल 2015 में 12,116 थी जो साल 2020 में तीन गुना बढ़कर 35,774 हो गई। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन डॉक्टरों को भारत में प्रेक्टिस करने के लिए लाइसेंस देने वाली इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने वालों की संख्या इस अनुपात से काफी कम है।  

Photo captured during office hours of a company in Brazil.
यूक्रेन में चिकित्सा स्नातक की लागत छह साल की पूरी अवधि के लिए लगभग 15 से 20 लाख रुपये है जबकि भारत में निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस 4.5 साल के कोर्स के लिए 50 लाख रुपये से 1.5 करोड़ रुपये के बीच होती है। Photo by Lucas Vasques / Unsplash

यह परिक्षा भारत में चिकित्सा का अभ्यास करने के लिए लाइसेंस की चाह रखने वाले एमबीबीएस डिग्री धारकों के लिए अनिवार्य होती है जो विदेश से पढ़कर भारत वापस आते हैं। हालांकि भारत में इसी अवधि के दौरान लगभग 30,000 नई मेडिकल सीटें भी बढ़ी हैं। FMGE साल में दो बार NBE द्वारा आयोजित की जाती है और विदेशी डिग्री वाले स्नातकों को इसे पास करने के लिए कुल तीन प्रयासों की अनुमति होती है। FMGE के लिए उपस्थित होने वाले अधिकांश स्नातकों ने चीन, रूस, यूक्रेन, किर्गिस्तान, फिलीपींस और कजाकिस्तान में अध्ययन किया है।

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