वरिष्ठ कथाकार गीतांजलि श्री अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लेखिका बन गई हैं। उनका उपन्यास 'टॉम्ब ऑफ सैंड' पांच अन्य कोरियाई, नॉर्वेजियन, जापानी, स्पेनिश और पोलिश भाषा में छपी किताब के साथ शार्टलिस्ट किया गया था। गीतांजलि ने खुशी के इस पल को जाहिर करते हुए कहा कि मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था। 'टॉम्ब ऑफ सैंड' गीतांजलि श्री के मूल हिंदी उपन्यास 'रेत-समाधि' का अनुवाद है।

गीतांजलि द्वारा लिखित गई इस किताब का अंग्रेजी में अनुवाद अमेरिकी लेखक डेजी रॉकवेल ने किया है। इस किताब को द लंदन बुक फेयर में फ्रैंक वाईन ने लॉन्च किया था। यह किताब उत्तर भारत की एक 80 वर्षीय महिला की कहानी पर आधारित है जो अपने पति की मौत के बाद डिप्रेशन में चली जाती है। बाद में वह फिर से खुद को मजबूत बनाती है और एक ऐसी महिला के रूप में खुद को बदल जाती है जो बाद में बड़े मुकाम हासिल करती है।
Take a look at the moment Geetanjali Shree and @shreedaisy found out that they had won the #2022InternationalBooker Prize! Find out more about ‘Tomb of Sand’ here: https://t.co/VBBrTmfNIH@TiltedAxisPress #TranslatedFiction pic.twitter.com/YGJDgMLD6G
— The Booker Prizes (@TheBookerPrizes) May 26, 2022
उन्होंने कहा कि पुरस्कार जीतने वाली हिंदी की पहली पुस्तक होने के नाते मुझे अच्छा लग रहा है। मैं एक भाषा और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हूं। यह मान्यता विशेष रूप से हिंदी साहित्य की पूरी दुनिया और समग्र रूप से भारतीय साहित्य को व्यापक दायरे में लाती है।
725 पन्नों की गीतांजलि श्री की 'रेत समाधि' का मुकाबला बोरा चुंग की 'कर्सड बनी', जॉन फॉसे की 'ए न्यू नेम सेप्टोलॉजी VI-VII', मिको कावाकामी की 'हेवन', क्लाउडिया पिनेरो की 'एलेना नोज' और ओल्गा टोकारजुक की 'द बुक्स ऑफ जैकब' से था। बुकर पुरस्कार के तौर पर मिलने वाली राशि 50,000 पाउंड यानी 50 लाख रुपये है जो गीतांजलि और इस किताब की अनुवादक डेजी रॉकवेल के बीच समान रूप से विभाजित किया जाएगा।

उत्तर प्रदेश राज्य के मैनपुरी शहर में जन्मी 64 वर्षीय गीतांजलि श्री तीन उपन्यासों और कई कहानी संग्रहों की लेखक हैं। 'रेत समाधि' ब्रिटेन में प्रकाशित होने वाली उनकी पहली किताब है। वह कहती हैं कि किसी किताब को लिखना तब ज्यादा आसान हो जाता है, जब उसमें महिला और बार्डर का जिक्र हो। यहां तक कि महिलाएं भी अपने आप में काफी होती हैं। महिलाएं अपने आप में कहानियां होती हैं।
गौरतलब है कि इंटरनेशनल बुकर प्राइज हर वर्ष अंग्रेजी में अनुवादित और इंग्लैंड/आयरलैंड में छपी किसी एक अंतरराष्ट्रीय भाषा की किताब को दिया जाता है। इस पुरस्कार की शुरूआत वर्ष 2005 में हुई थी। 'टॉम्ब ऑफ सैंड' मूल हिंदी उपन्यास 'रेत-समाधि' का अनुवाद है। इसका अंग्रेजी अनुवाद मशहूर अनुवादक डेजी रॉकवेल ने किया है। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित 'रेत समाधि' हिंदी की पहली ऐसी किताब है जिसने न केवल अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की लॉन्गलिस्ट और शॉर्टलिस्ट में जगह बनायी बल्कि गुरुवार की रात, लंदन में हुए समारोह में ये सम्मान अपने नाम भी किया।
इंटरनेशनल बुकर प्राइजदेने वाली संस्था का कहना है कि 'टोंब ऑफ सैंड' अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली किसी भी भारतीय भाषा में मूल रूप से लिखी गई पहली पुस्तक है और हिंदी से अनुवादित पहला उपन्यास। यह उपन्यास उत्तर भारत की कहानी है जो एक 80 वर्षीय महिला के जीवन पर आधारित है। यह उपन्यास मौलिक होने के साथ-साथ धर्म, देशों और जेंडर की सरहदों के विनाशकारी असर पर टिप्पणी है।