अमेरिकी अक्सर ये आरोप लगाते रहते हैं कि विदेशी खासकर भारतीयों के चलते उनका हक मारा जाता है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो इसे चुनावी मुद्दा बनाते हुए कई ऐसे नियम बनाए थे, जिससे नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता मिले और दूसरे देशों के युवाओं के लिए यूएस जाकर काम करना मुश्किल हो जाए। लेकिन तथ्य इसके बिल्कुल उलट हैं। कोविड महामारी के दौरान विदेशी खासतौर पर भारतीयों का अमेरिका जाना कम हुआ। अगर अमेरिकी आरोप को सही माने तो इस दौरान अमेरिका के स्थानीय लोगों को ज्यादा नौकरी मिलनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं है।
आईटी सहित कौशल वाले बड़े सेक्टरों में काम करने के लिए जिस योग्यता की जरूरत होती है, उसका स्थानीय पेशेवरों में अभाव दिखता है। यही वजह है कि अमेरिकी कंपनियां भारतीय योग्यता के आगे नतमस्तक होते रहे हैं। नेशनल फाउंडेशन ऑफ अमेरिकन पॉलिसी (NFAP) की अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि पिछले दो साल के दौरान एच-1बी वीजा जारी करने में कटौती की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी की वजह से अमेरिका के श्रम बाजार में अप्रवासियों की संख्या में कमी आई। यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ फ्लोरिडा के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर मेडेलिन जेवोडनी का कहना है कि इन अप्रवासियों की संख्या में कमी होने के बावजूद इस बात का कोई सबूत सामने नहीं आया कि इससे स्थानीय अमेरिकी नागरिकों को बड़ी संख्या में नौकरी मिल गई।