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हमारी प्राणदायिनी धरती कब तक सांप्रदायिकता के उन्माद की भेंट चढ़ती रहेगी!

अब नयी पीढ़ी के लिए एक चुनौती है कि वह विश्व की सर्वप्रथम प्रचलित रही मूल संस्कृति एवं अपने पूर्वजों के वास्तविक इतिहास को जानने के लिए समस्त विश्वसनीय तकनीकों का सहारा लेकर विश्व के वास्तविक इतिहास को पुनः खोजें

अमेरिका यात्रा- अंक 15

यह धरती सबकी है, इसमें एक वर्ग विशेष को महत्व दिलाने के लिए इतिहास से छेड़-छाड़ करना संपूर्ण मानव जाति के साथ अन्याय है। संसार की नई पीढ़ी को अपने पूर्वजों के बारे में सही जानकारी पाने का अधिकार है।

मेरी यह स्पष्ट मान्यता है कि विश्व के हर कोने में सर्व प्रथम वेदोक्त विचारधारा वाले लोग ही बसते थे। जितने भी प्राकृतिक संसाधन हैं, उन सबका सर्वप्रथम नामकरण भारत के ऋषि मुनियों ने ही किया था। उनके द्वारा किये गये नामकरण का आधार जहां नदी, पर्वत व जंगलों की विशेषताओं पर अवलंबित था वहीं किसी महान विभूति के नित्य इतिहास को भी प्रदर्शित करता था। सृष्टि के आरम्भ से लेकर महाभारत काल तक न कोई संप्रदाय था और न ही कोई आत्ममुग्ध प्रवर्तक था। केवल-केवल एक ही निराकार ब्रह्म (ओ३म्) के उपासक एवं परम प्रमाण स्वरूप एक ही ज्ञात स्रोत (वेद) के अनुरूप संपूर्ण भूमंडल के क्रियाकलाप संचालित थे।

जितने भी प्राकृतिक संसाधन हैं, उन सबका सर्वप्रथम नामकरण भारत के ऋषि मुनियों ने ही किया था। 

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