विशेष लेख: अमेरिका की नीति और चीन की चुनौती

करीब-करीब तीन साल से बाइडेन प्रशासन एक ऐसी रणनीति बनाने के लिए जूझ रहा है, जिससे चीन से प्रभावी तरीके से निपटा जा सके। उसे ऐसी रणनीति की तलाश है जो अमेरिका के राष्ट्रीय हितों और यूरोप में उसके सहयोगियों तथा दोस्तों के साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिहाज से भी कारगर साबित हो। बीजिंग की सैन्य योजनाओं और रणनीतियों को मदद से महरूम करने के लिए अब अमेरिका ने एक कदम उठाया है। अमेरिका अब उन्नत कंप्यूटर चिप्स, माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स, क्वांटम सूचना प्रौद्योगिकियों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में अपने चीनी निवेश को सीमित कर देगा। नया आदेश सुरक्षा के आधार पर स्मार्टफोन और अन्य प्रौद्योगिकियों में उपयोग किए जाने वाले प्रोसेसर चिप्स पर पहले से ही लागू प्रतिबंधों के अतिरिक्त है।

अमेरिका के इस आदेश पर चीन की ओर से अपेक्षित और तीखी प्रतिक्रिया आनी ही थी। लिहाजा चीन ने वाशिंगटन पर 'प्रौद्योगिकी आधिपत्य' का आरोप लगाते हुए उससे अपने 'गलत फैसले' को तत्काल वापस लेने की बात कही है। चीन से संकेत मिल रहे हैं कि जैसे को तैसा की स्थिति इस आधार पर है कि उसे भी अपने अधिकारों और हितों की रक्षा करने का अधिकार है। बाइडेन के फैसले को लेकर घरेलू स्तर पर भी प्रतिक्रिया अपेक्षित ही रही। डेमोक्रेट्स ने इस फैसले की सराहना की और ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने आलोचना। सीनेट डेमोक्रेटिक नेता चक शूमर ने कहा कि बहुत लंबे समय से अमेरिकी पैसे से चीन की सैन्य शक्ति को बढ़ाने में मदद मिल रही रही थी जबकि रिपब्लिकन सीनेटर मार्को रुबियो ने कहा कि योजना 'लगभग हास्यास्पद' और 'खामियों से भरी' थी।

वहीं, वाशिंगटन में चीनी दूतावास के एक प्रवक्ता ने कहा कि 70,000 अमेरिकी कंपनियां चीन में कारोबार करती हैं और हाल के उपायों से संयुक्त राज्य अमेरिका में निवेशकों के विश्वास को नुकसान पहुंचाने के अलावा अमेरिका और चीन दोनों देशों के कारोबार को हानि होगी। मामलों की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञों का तर्क है कि चिप्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रति वाशिंगटन का जुनून पूरी तरह से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में चीन की व्यापक शक्तियों के अनुरूप नहीं है, जिसमें कम्युनिस्ट दिग्गज ने तेजी से प्रगति की है। जानकारों का यह भी मानना है कि इस तरह से समस्या का संपूर्ण समाधान होने वाला नहीं है। ऐसे में चीन के साथ अमेरिकी व्यापारिक भागीदारी उद्यमों को प्रतिबंधों से बचने के लिए नए तरीकों की तलाश करनी पड़ेगी।

इन हालात में बाइडेन प्रशासन को अपनी चीनी नीतियों पर संपूर्णता के साथ विचार करना होगा ताकि हिंद-प्रशांत में उसके सहयोगी और दोस्त आश्वस्त हो सकें कि उसके पास वास्तव में एक ऐसी रणनीति है जो दीर्घकालिक प्रतिबद्धता पर कायम है। आर्थिक चाबुक चलाने से तो चीन चिढ़ेगा और प्रतिशोध में ड्रेगन आग उगलेगा। इससे उन देशों पर भी आंच आएगी जो अपनी आर्थिक भलाई के लिए चीन के साथ व्यापार पर निर्भर हैं।