विस्थापन के बाद : एक खोज और पूरब-पश्चिम का मनोविज्ञान

भारतीय लेखिका त्रिशा सकलेचा बर्लिन में टैगोर सेंटर में निदेशक का पद संभालने वाली हैं। यह जर्मनी में भारतीय दूतावास की एक सांस्कृतिक शाखा है। त्रिशा अपनी तीसरी किताब के लॉन्च को लेकर भी उत्साहित हैं, जो इस साल के अंत में प्रकाशित होगी। इन दिनों वह अपने तीसरे उपन्यास का संपादन पूरा करने में जुटी हैं। यह उपन्यास एक भारतीय परिवार के इर्द-गिर्द घूमता है, जो छुट्टी पर है, लेकिन अंत में उसे एक मर्डर मिस्ट्री आ घेरती है।

त्रिशा दिल्ली में पली-बढ़ी हैं और अब लंदन में रहती हैं। उन्हें मनोवैज्ञानिक थ्रिलर लिखना और उस विस्थापन की खोज करना पसंद है जिसका भारतीयों को तब सामना करना पड़ता है जब उन्हें उनके देश से दूर ले जाया जाता है और दूसरे देश में रखा जाता है। त्रिशा मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा की पोती हैं। न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ एक बातचीत में त्रिशा कहती हैं कि ऐसे हालात आपके दिमाग में एक अजब स्थिति पैदा करते हैं। आपको पता ही नहीं चलता कि आप कहां के हैं। यह एक दिलचस्प मनोविज्ञान हो जाता है।