रूस-यूक्रेन के बीच हिंसक टकराव यानी युद्ध 15 महीनों से दुनिया देख रही है। इस दौरान किसी भी बिंदु पर यूक्रेन में इतनी खतरनाक स्थितियां कभी नहीं दिखीं कि लगे एक देश पूरी तरह से तबाही के करीब जा रहा है। एक हफ्ते पहले क्रेमलिन के सीनेट पैलेस पर रात के समय ड्रोन से दो हमले हुए। इस घटना को लेकर तत्काल तो कुछ पता नहीं चला लेकिन इतना तय है कि इससे रूस, यूक्रेन, यूरोप, अमेरिका और स्वाभाविक रूप से शेष दुनिया में चर्चाओं का बाजार गर्म रहा और सियासी कंदराओं में संवाद सुलग उठा।
यह युद्ध को रूस के कंधों पर रखने जैसा ही कुछ हुआ और इसकी प्रतिक्रिया भी प्रत्याशित हुई। जब हमलावर ड्रोन को मार गिराया गया तो खबरें भी उसी तरह की बनीं जैसा कि लग रहा था। मॉस्को ने इसमें अमेरिका का हाथ बताया। बाइडेन प्रशासन ने इन कयासों का खंडन किया। यूकेन ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि भला वह क्यों रूस के कंधों पर युद्ध रखना चाहेगा, वह तो केवल अपनी धरती पर आक्रांताओं को मुंह-तोड़ जवाब दे रहा है। अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की तमाशबीन आंखें तो अपने होंठों पर मौन का पहरा पहले से ही बैठाए बैठी हैं। उनकी बेबसी बस इसी में जाहिर हो रही है कि खतरनाक हालात अतिवादियों को सिर उठाने का मौका न दें। अब ड्रोन मामले में कुछ ठोस तो हाथ लगा नहीं है इसलिए दुनिया के पास बुद्धिमानी भरी अटकलें लगाने के अलावा बचा ही क्या है।
एक वैचारिक शगल यह चल रहा है कि हमला रूस की ओर से नियोजित था ताकि आतंकवाद का दमन करने के नाम पर मॉस्को अधिक क्रूरता के साथ अपना विध्वंसक जंगी साजो-सामान लेकर 'दुश्मन' पर टूट पड़े और दुनिया को जता सके कि यह सब करने के लिए वह विवश था। दूसरी ओर कट्टरपंथी हैं जो अकल्पनीय हथियारों का उपयोग करके एक नया चरण शुरू करने के लिए रूसी सत्ता प्रतिष्ठान को उकसा रहे हैं। और इन दोनों विचारों के बीच में वे रणनीतिकार हैं जो यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि रूस के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा में किस तरह सेंध लगाई जा सकती है। बहुत कुछ कयासों और कोहरे में घिरा है। यह कैसे हुआ, किसने किया, उसने किया वगैरह...। लेकिन इस सबके बीच यह बात नहीं भुलाई जा सकती कि पिछले साल फरवरी में जब से फर्जी 'विशेष सैन्य अभियान' चालू हुआ है तब से ही यह संघर्ष इतने अनिश्चित हालात में नहीं पहुंचा। और यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब चीन जैसा देश अपने तथाकथित मास्को समर्थक रुख को दरकिनार कर युद्ध को समाप्त करने के तरीकों पर विचार कर रहा है।
लेकिन एक साल से अधिक समय में युद्ध से जर्जर यूक्रेन किसी नायक की भांति अपने ऊपर होने वाले हमलों को झेल रहा है और जहां तक संभव है वहां जवाब भी दे रहा है। उसके कदमों को यूरोप और अमेरिका ने आधार दिया है। अब बाकी कुछ तो चल नहीं रहा लेकिन ड्रोन हमलों के बाद यही चकल्लस चल रही है कि आखिर किसके पास सबसे संवेदनशीन 'उड़न-अस्त्र' हैं। जंग हर दौर में शांति के सकारात्मक और ईमानदाराना प्रयासों से ही खत्म की जा सकती है। इसमें कोई संदेह नहीं।
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