भारत में गरीब बच्चों को 'डिजिटल ज्ञान' की दौलत बांटने में जुटा एक मिशन
'कंप्यूटर शिक्षा' भारत में वंचित वर्ग के बच्चों को कंप्यूटर ज्ञान देने का कार्यक्रम है। डॉ. राकेश सूरी ने लगभग एक दशक पहले भारत के गुड़गांव में इसकी छोटी सी शुरुआत की थी। आज ये कार्यक्रम भारत के 17 राज्यों तक फैल चुका है। लगभग 1,28,000 छात्रों को इसका लाभ मिल रहा है। डॉ. सूरी को उम्मीद है कि इस साल ऐसे बच्चों की संख्या 10 लाख तक पहुंच जाएगी। वे गर्व से दावा करते हैं कि उनके बच्चे फाइव स्टार स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से भी ज्यादा कंप्यूटर स्मार्ट हैं।
बिट्स पिलानी से पढ़ाई करने वाले डॉ. सूरी ने न्यू इंडिया अब्रॉड से बातचीत में बताया कि मैं खुद ऐसी ही परिस्थितियों से होकर गुजरा हूं। हमारे पास संसाधन नही थे। हम जो करना चाहते थे, जो पढ़ना चाहते थे, मजबूरी की वजह से नहीं कर पाते थे। मुझे इससे थोड़ी शर्मिंदगी भी महसूस होती है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से प्रबंधन में पीएचडी करने वाले सूरी ने बताया कि जब मैं छोटा था तभी मैंने फैसला कर लिया था कि एक दिन मैं उन बच्चों के लिए कुछ करने की कोशिश करूंगा जो मेरे जैसे हालात में रहे हैं और जीवन में मामूली चीजें पाने के लिए भी जूझ रहे हैं। मैंने ऐसे बच्चों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है।
सूरी ने आगे बताया कि 'कंप्यूटर शिक्षा' को इस मुकाम तक लाने में बहुत से लोगों ने मेरी मदद की। वर्ष 2012 में मैंने कुछ दोस्तों ने मिलकर शिक्षा आधारित एनजीओ बनाने की योजना बनाई थी। हमने एमबीए इंटर्न को हायर किया। उनसे भारत के अलग अलग जिलों में लगभग 50 स्कूलो में सर्वे कराया। हम जानना चाहते थे कि स्कूलों में विद्यार्थी क्या चाहते हैं, शिक्षक क्या चाहते हैं। उन्हें किस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है।
इन एमबीए इंटर्न्स ने सार्वजनिक और निजी सेक्टर के स्कूलों का सर्वेक्षण किया। इनमें एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे स्कूल भी शामिल थे। हमने एक कॉमन बात देखी, सभी स्कूल चाहे अच्छे हों या बुरे अंग्रेजी, हिंदी और गणित पढ़ाने में सक्षम थे लेकिन उनमें से कोई भी कंप्यूटर साक्षरता या कंप्यूटर शिक्षा के बारे में कुछ करने लायक नहीं था। हमारी बैकग्राउंड भी आईटी थी इसलिए हमने महसूस किया कि यही ऐसा क्षेत्र है जहां हम काम कर सकते हैं।
सूरी ने बताया कि भारत में पांच से 16 वर्ष की आयु के 33 करोड़ 40 लाख बच्चे हैं। ये एक से 12वीं कक्षा तक पढ़ते हैं। इनमें से 29 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने कभी कंप्यूटर की पढ़ाई नहीं की होगी। वे जब स्कूल और कॉलेज पास करके निकलेंगे तो उन्हें कंप्यूटर का कुछ ज्ञान नहीं होगा। आजकल के जमाने में बिना कंप्यूटर साक्षरता के आपको अच्छी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है। भारत ही नहीं दुनिया के अन्य तमाम हिस्सों की भी यही सचाई है कि कर्मचारियों को कंप्यूटर का बुनियादी ज्ञान तो होना ही चाहिए। अगर आपके पास वह नहीं है तो आप गिग नौकरियां ही कर पाएंगे जिनमें काफी कम वेतन मिलता है।
सूरी ने आगे बताया कि इस तरह हमने कंप्यूटर शिक्षा की शुरुआत की। सबसे पहले गौशाला में बने स्कूल के 60 बच्चों को कंप्यूटर की बुनियादी बातें सिखाईं। ये बच्चे आसपास की झुग्गी झोपड़ियों में रहते थे। इन बच्चों को काम करने के लिए 15 लैपटॉप उपलब्ध कराए। इसकी जानकारी जब दूसरे बच्चों को मिली तो उनमें भी उत्सुकता जागी। इस तरह जल्द ही 15 लैपटॉप से 35 हो गए और छात्रों की संख्या भी 200 तक पहुंच गई।
उन्होंने बताया कि आसपास के स्कूलों को भी इस कार्यक्रम के बारे में पता चला तो उन्होंने भी अपने बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा देने का आग्रह किया। इस तरह केवल 11 महीनों में ही हमारा कार्यक्रम 60 छात्रों से 1200 बच्चों तक पहुंच गया। इस स्टार्टअप की शुरुआती लागत लगभग 8 लाख रुपये थी यानी मोटे तौर पर 9500 डॉलर। एक दशक बाद यह कार्यक्रम भारत के 17 राज्यों तक फैल गया। लगभग 1,28,000 छात्रों को इसका लाभ मिलने लगा। सूरी ने उम्मीद जताई कि इस साल ऐसे बच्चों की संख्या 10 लाख तक हो जाएगी।
कंप्यूटर शिक्षा के तहत 55 सप्ताह का पाठ्यक्रम उपलब्ध कराया जाता है। इसमें छात्र बुनियादी कंप्यूटर साक्षरता हासिल करते हैं जैसे कंप्यूटर शुरू करना, बंद करना, माउस और टच पैड का उपयोग करना, वर्ड प्रोसेसिंग और फ़ॉर्मेटिंग, फाइलों को व्यवस्थित करना और नाम देना आदि। वे पेंट के जरिए ड्रॉ करना, डेटाबेस बनाने के लिए स्प्रेडशीट का उपयोग करना, प्रेजेंटेशन सॉफ्टवेयर, इंटरनेट सर्च और ईमेल मैनेज करने जैसे एडवांस स्किल भी सीखते हैं।
सूरी ने बताया कि कंप्यूटर शिक्षा की पढ़ाई वीडियो के जरिए कराई जाती है। शिक्षकों को भी प्रशिक्षित किया जाता है कि वे किस तरह वीडियो को मैनेज करें और बच्चों के सवालों के जवाब दें। जब बच्चे कंप्यूटर पर एक-दो सप्ताह बिता लेते हैं तो उनके आत्मविश्वास का स्तर किसी भी पाँच सितारा स्कूली बच्चे के जितना हो जाता है। वे खुद को कमजोर महसूस नहीं करते क्योंकि वे जानते हैं कि कंप्यूटर के मामले में वह फाइव स्टार स्कूल के बच्चे से अच्छा जानते हैं।
सूरी कहते हैं कि फाइव स्टार स्कूल में बच्चे फेसबुक और सोशल मीडिया में अधिक व्यस्त रहते हैं जबकि ये ग्रामीण बच्चे असल में कंप्यूटर साक्षरता हासिल कर रहे होते हैं। वे एक्सेल सीखते, वर्ड सीखते हैं, पावरपॉइंट सीखते हैं इसलिए वे ज्यादा बेहतर तरीके से कंप्यूटर चला पाते हैं। सूरी गर्व के साथ कहते हैं कि हमारे बच्चों ने जहां भी इन फाइव स्टार स्कूली बच्चों से मुकाबला किया, जीतकर ही आए हैं।