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हिंदू संगठनों से पीड़ित बताकर मांगा था वीजा, ऑस्ट्रेलियाई अदालत ने किया खारिज

न्यायाधीश ने कहा कि अधिकारियों को पता चला है कि 2014 में उस पर हमला होने की बात उसके पासपोर्ट से मिले सबूतों के आधार पर विश्वास योग्य नहीं है। पासपोर्ट के अनुसार हमले के कथित समय पर वह थाईलैंड में था। आप्रवासन और गृह मामलों के विभाग ने कहा था कि अपीलकर्ता की बात में सच्चाई नहीं है।

ऑस्ट्रेलिया की अदालत ने एक भारतीय व्यक्ति की वह याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उसने खुद को प्रोटेक्शन वीजा देने से इनकार करने के सरकार के फैसले को चुनौती दी थी। अपीलकर्ता भारत का नागरिक है। अदालत के फैसले के अनुसार यह शख्स मार्च 2015 में यात्री वीजा पर ऑस्ट्रेलिया आया था। उसने मई 2015 में प्रोटेक्शन वीजा के लिए आवेदन किया था।

फैसले में कहा गया है, 'अपीलकर्ता ने दावा किया है कि वह तमिलनाडु मुस्लिम मुन्नेत्र कलगम (TMMK) का सदस्य है और सुनामी राहत कार्य समेत विभिन्न सामाजिक कार्यों में शामिल रहा है। उसने अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के सदस्यों का सहयोग करने का काम भी किया है। अपीलकर्ता ने यह दावा भी किया है कि भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और अन्य हिंदू संगठनों ने मुसलमानों का विरोध करते हैं और उन्होंने टीएमएमके के सदस्यों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था।'

भारतीय व्यक्ति ने मई 2015 में प्रोटेक्शन वीजा के लिए आवेदन किया था।

अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता ने दावा किया है कि एक इमारत के निर्माण को लेकर विवाद था, जिसका इस्तेमाल रमजान के पवित्र माह के दौरान श्रद्धालुओं के लिए भोजन बनाने के लिए किया जाना था। अपीलकर्ता के अनुसार जुलाई 2014 में आरएसएस और अन्य हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने उस पर हमला किया था और उसकी हत्या करने की कोशिश की थी।

अपीलकर्ता ने यह भी दावा किया है कि इन संगठनों ने बाद में भी कई बार उस पर हमला करने की कोशिश की थी, जिसके चलते उसे भारत छोड़कर ऑस्ट्रेलिया आना पड़ा। वहीं, न्यायाधीश ने कहा कि अधिकारियों को पता चला है कि 2014 में उस पर हमला होने की बात उसके पासपोर्ट से मिले सबूतों के आधार पर विश्वास योग्य नहीं है। पासपोर्ट के अनुसार हमले के कथित समय पर वह थाईलैंड में था।

इसे लेकर आप्रवासन और गृह मामलों के विभाग ने कहा था कि अपीलकर्ता की बात में सच्चाई नहीं है और या तो उसने अपनी बात बढ़ा-चढ़ा कर बताई है या फिर पूरी तरह से फर्जी कहानी गढ़ी है। ऐसे में हम इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि अगर वह भारत लौटता है तो उसका वहां उसे उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा। विभाग के इस फैसले को प्रशासनिक अपीलीय न्यायाधिकरण ने भी सही माना था और एक मुख्य न्यायाधीश ने भी सही करार दिया है।

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