किसी महिला के गर्भपात कराने को लेकर अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए एक विवादित फैसले ने न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में इस बात पर बहस शुरू कर दी है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 50 साल पुराने एक ऐतिहासिक निर्णय को खारिज करते हुए कहा कि गर्भपात कराना एक संवैधानिक अधिकार नहीं है।
बता दें कि यह मुद्दा भारत में भी लंबे समय से विवाद का विषय बना रहा है। भारत में गर्भपात कानूनों की बात करें तो भ्रूण हत्या यहां पर अपराध है। लेकिन अगर ऐसा महिला की जान बचाने के लिए या ऐसी अन्य तार्किक परिस्थितियों में किया जाता है तो इसे अपराध की श्रेणी में वहीं रखा जाता है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत गर्भपात करवा रही महिला की निजता सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और उसकी पहचान सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए।
क्या भारत में गर्भपात वैध है?
हां, भारत में गर्भपात वैध है और यह लगभग 50 साल से वैध रहा है। हालांकि, इसकी वैधता कुछ निश्चित परिस्थितियों में ही मान्य होती है। बता दें कि एमटीपी अधिनियम के तहत गर्भपात को कुछ निश्चित परिस्थितियों में अनुमति दी गई है। उल्लेखनीय है कि यह कानून मुख्य रूप से जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए लागू किया गया था। जब एमटीपी एक्ट लागू किया गया था तब गर्भपात कराने के लिए सीमा गर्भधारण से 20 सप्ताह तक की थी। लेकिन साल 2021 में एक संशोधन के माध्यम से इस सीमा को बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया था।
भारत में चिकित्सकीय गर्भपात के लिए शर्तें
अगर 20 सप्ताह के अंदर गर्भपात कराना है तो महिला को एक चिकित्सक की राय लेनी होगी। अगर 24 सप्ताह के अंदर गर्भपात होना है तो फिर महिला को दो डॉक्टरों की राय की जरूरत होगी। अगर गर्भधारण के चलते महिला को जान का खतरा है तो गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है। अगर यह पता चलता है कि बच्चा किसी गंभीर शारीरिक या मानसिक बीमारी से ग्रस्त होगा तो भी गर्भपात के लिए मंजूरी दी जा सकती है। इसके अलावा अगर महिला यौन उत्पीड़न या दुष्कर्म की शिकार हुई है तो वह 24 सप्ताह की अवधि में गर्भपात करा सकती है। यह समयावधि शारीरिक रूप से अक्षम नाबालिग लड़कियों और मानसिक रूप से बीमार महिलाओं के लिए भी लागू होती है।