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शख्सियत : US में रहकर भी अपनों की चिंता, ग्रामीण विकास के लिए भारत में बनाए हजारों तालाब

आईआईटी मद्रास से इंजीनियरिंग और कनाडा से पीएचडी करने वाले गुरुराज देशपांडे 1984 में अमेरिका में बस गए थे। वहां वह कई कंपनियों की स्थापना से जुड़े रहे और एक समय में फोर्ब्स ने उन्हें सबसे अमीर अमेरिकियों की सूची में जगह दी थी। वह ओबामा के भी खास माने जाते हैं।

गुरुराज देशपांडे। 

अमेरिका में रहने वाले एक भारतवंशी, जो हजारों मील दूर रहकर भी भारत के किसानों के बारे में सोचते हैं, ग्रामीण विकास पर काम करते हैं। उन्हें अमेरिका बसे तीन दशक से अधिक वक्त हो चुका है लेकिन वह भारत की समृद्धि में अपना अंशदान देते आ रहे हैं। हम बात कर रहे हैं गुरुराज देशपांडे की जो एक उद्यमी और वेंचर कैपिटलिस्ट हैं। भारत से कॉलेज स्तर की शिक्षा हासिल करने वाले देशपांडे साइकामोर नेटवर्क के सह-संस्थापक हैं और उन्होंने अमेरिका के प्रतिष्ठित संस्थान MIT में देशपांडे सेंटर फॉर टेक्नोलोजी इनोवेशन की स्थापना की है जबकि देशपांडे फाउंडेशन के जरिए लोक कल्याणकारी काम करते हैं।

IIT ग्रैजुएट ने कनाडा में की थी करियर की शुरुआत

देशपांडे का जन्म कर्नाटक के हुबली शहर में एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। उनके पिता लेबर कमिश्नर थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई हुबली में हुई और फिर उन्होंने देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान आईआईटी, मद्रास से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। मेधावी छात्र रहे देशपांडे आईआईटी पर कहां रुकने वाले थे। उन्हें आगे मास्टर डिग्री हासिल करनी थी। उन्होंने कनाडा जाकर आगे की पढ़ाई पूरी करने का फैसला किया। वहां के न्यू ब्रुन्सविक यूनिवर्सिटी से पहले एमएस किया और फिर ओंटेरिया के क्वीन्स यूनिवर्सिटी से डेटा कम्युनिकेशन विषय़ में पीएचडी की। वह शैक्षणिक रूप से अपने आप को काफी सशक्त बना चुके थे और ऐसे में उनके लिए नौकरी पाना बहुत ही आसान बात थी। उनकी प्रतिभा को देखते हुए यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर  पीटर ब्रैकेट ने मोटोरोला की एक इकाई कोडेक्स कॉर्पोरेशन में काम करने का ऑफर दिया था।

गुरुराज ने बनाई हैं कई कंपनियां।

कंपनी बनाकर बेचते गए, कमाते गए मुनाफा

युवावस्था में ही उनके लक्ष्य काफी बड़े थे इसलिए उन्होंने अमेरिका जाकर काम करने का फैसला किया। 1984 में वह अमेरिका में बस गए और वहां राउटर बनाने वाली कंपनी कोरल नेटवर्क की शुरुआत की। उन्होंने काफी बड़ी कंपनी बना ली थी कुछ सालों के बाद जब उन्होंने उसे बेचा तो यह 15 लाख डॉलर में बिकी। इसके बाद उन्होंने 1990 में कास्केड कम्युनिकेशन की शुरुआत हुई तो वह उसके सह-संस्थापक थे। हालांकि उन्होंने इस कंपनी को 7 साल बाद 3.7 बिलियन डॉलर में बेच दिया।

फोर्ब्स में मिली जगह, ओबामा के भी हैं खास

देशपांडे  ने एमआईटी के एक शोधकर्ता की मदद से 1998 में साइकामोर नेटवर्क्स की स्थापना की। साइकामोर ने एक साल बाद ही अपना आईपीओ शुरू किया। इसने देशपांडे को दुनिया के उन सबसे अमीर व्यवसायियों में ला खड़ा किया, जिन्होंने अपने दम पर अपना बिजनेस खड़ा है। उनका बढ़ता कद ही था कि उन्हें फोर्ब्स ने साल 2000 में 400 सबसे अमीर अमेरिकी नागरिकों की सूची में जगह दी। टेक्नोलोजी के इस धुरंधर पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी भरोसा करते हैं। उन्होंने 2010 में अपने कार्यकाल के दौरान देशपांड को नवोन्मेश और उद्यमशीलता से संबंधित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का सह-अध्यक्ष नियुक्त किया था। इस पद पर वह 2015 तक बने रहे। 2011 में देशपांडे जब भारत आए थे तो उनके गृह राज्य कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येद्युरप्पा ने उनके लिए स्वागत समारोह का आयोजन किया था।

2011 में गुरुराज देशपांडे को सम्मानित करते हुए कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री येद्युरप्पा।

भारत को दी यह सौगात

देशपांडे और उनकी पत्नी जयश्री लोक कल्याणकारी काम से भी जुड़े हुए हैं। उन्होंने इसी काम के लिए देशपांडे फाउंडेशन की स्थापना की थी जो कि उद्यमशीलता और नवोन्मेश के जरिए सामाजिक और आर्थिक बदलाव लाने का काम कर रहा है। उन्होंने 2021 में अपने सोशल मीडिया पोस्ट में यह खुलासा किया था कि देशपांडे फाउंडेशन ने भारत में 6000 से अधिक तालाब बनाए हैं। अगले चरण में उनकी भारत में एक लाख तालाब बनाने की योजना है, जिसमें कम से कम 800 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह तालाब भारत के किसानों और ग्रामीण विकास में मदद देने के उद्देश्य से बनवाए जा रहे हैं।

भारत के इस बड़े व्यवसायी से है करीबी नाता

बता दें कि देशपांडे का इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति से करीबी नाता है। देशपांडे की शादी नारायण मूर्ति की शिक्षाविद और समाजसेवी पत्नी सुधा मूर्ति की बहन जयश्री कुलकर्णी से शादी हुई है। जयश्री एमआईटी के देशपांडे सेंटर फॉर टेक्नोलोजिकल इनोवेशन की सह-संस्थापक हैं। देशपांडे भले ही अमेरिका में बस गए हैं लेकिन उनका अपने घर से जुड़ाव बना हुआ है। उन्हें हुबली के पैतृक घर से खास लगाव है जिसके रखरखाव पर वह हमेशा ध्यान देते हैं ताकि घर की विरासत सहेजी रहे।

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