विश्लेषण : क्या अमेरिका में जाति का इस्तेमाल भारत विरोध के लिए हो रहा है!
भारत विविध जातियों और संप्रदायों का एक बड़ा ताना-बाना है। इनका सामाजिक और राजनीतिक असर भी उजागर है। लेकिन क्या अमेरिका में जातियों का इस्तेमाल भारत विरोध अथवा डायस्पोरा विरोध के लिए किया जा रहा है।
#Breaking: “An unlikely trio of actors have joined together and are using a bait and switch to weaponize #caste as an issue in the United States.” CoHNA discusses a new report released earlier today, with its author, Dr. Salvatore Babones, Associate Professor at the University of… pic.twitter.com/IqKCwpGTd3
— CoHNA (Coalition of Hindus of North America) (@CoHNAOfficial) November 20, 2023
सिडनी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ. सल्वातोर बेबोनीज ने अपने अनुसंधानपरक पर्चे 'दि वेपनाइजेशन ऑफ कास्ट इन अमेरिका' के माध्मय से अपना यह दावा प्रस्तुत किया है। एक रिपोर्ट के संदर्भ से CoHNA (उत्तरी अमेरिका के हिंदुओं का गठबंधन) ने इस संवेदनशील मसले पर चर्चा की है।
प्रो. सल्वातोर बेबोनीज अपने अध्ययन के माध्यम से कहते हैं कि अमेरिका में जाति को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। यानी अमेरिका में जाति का हथियारीकरण हो रहा है। और यह हथियार भारत के विरोध में इस्तेमाल किया जा रहा है।
प्रो. बेबोनीज का कहना है कि 'अमेरिका में जाति का हथियारीकरण' इस बात का सबूत देता है 'कास्ट इन यूएस' मामले में शामिल 'खिलाड़ी' वही हैं जो यहूदी विरोध में आवाज मुखर कर रहे हैं। यह भारत विरोधी प्रयास है और संयुक्त राज्य अमेरिका में दलितों के खिलाफ भेदभाव को मिटाने का कोई वास्तविक प्रयास नहीं है।
प्रोफेसर बेबोनीज एक सांख्यिकीविद् हैं और इक्वैलिटी लैब्स रिपोर्ट का विश्लेषण करते हुए इसकी सांख्यिकीय खामियों को उजागर करते हैं और बताते हैं कि कैसे यह संयुक्त राज्य अमेरिका में दलितों के अनुभव का एक विश्वसनीय पैमाना नहीं है और इसके नमूने पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। प्रो. बेबोनीज का दावा है कि 'उस रिपोर्ट के निष्कर्ष' गणितीय रूप से असंभावित हैं।
गौरतलब है कि कैलिफोर्निया में फ्रेस्नो जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने वाला दूसरा शहर बन गया है। इस वर्ष की शुरुआत में सिएटल जातिगत भेदभाव को गैरकानूनी घोषित करने वाला पहला अमेरिकी शहर बना। हालांकि जातिगत भेदभाव को लेकर अमेरिका में बसा भारतीय और भारतीय-अमेरिकी समाज विभाजित है।
एक वर्ग का मानना है कि अमेरिका जैसे देश में भी कार्यस्थलों और शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत भेदभाव गहराई के साथ अस्तित्व में है। इस बारे में लोगों के अपने अनुभव हैं लिहाजा वे जातिगत भेदभाव विरोधी कानून के हिमायती हैं।
दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं जो जातिगत भेदभाव को अपवाद मानकर इसकी व्यापकता को सिरे से खारिज करते हैं। इन लोगों का कहना है कि अगर अमेरिका में जातिगत भेदभाव के खिलाफ कानून बन जाएगा तो ऐसे मामलों में बढ़ोतरी होगी और यह कानून ही दलितों या वंचितों के शोषण का सबब बन जाएगा।
इन हालात में प्रो. बेबोनीज का अध्ययन वाकई इस मसले पर तार्किक विमर्श और स्थापनाओं की मांग करता है कि क्या वाकई अमेरिका में जाति का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में भारत विरोध के लिए किया जा रहा है। यह कुछ वैसा ही है जैसा कि भारत में जातियों का इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियां अपने हानि-लाभ के लिए करती हैं।