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SVB से उठे बैंकिंग तूफान के बाद, कई सवालों के जवाब अभी बाकी हैं

जिस सवाल पर पहले विचार करने की आवश्यकता है वह यह है कि क्या सिलिकॉन वैली बैंक के पतन का संबंध केवल बॉन्ड के लिए उनके अति जोखिम से था या कोई अन्य गहरा कारण है जो बैंकिंग उद्योग को झकझोर देता है।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बैंक कितना छोटा है या बड़ा। लेकिन अगर उसके 'भागने' की आहट भर मिल जाए तो फलसफा पूरी तरह बदल जाता है। बदन में सिहरन दौड़ उठती है। स्वाभाविक भी है। कुछ ऐसा ही हुआ कैलिफोर्निया में सिलिकन वैली बैंक (SVB) के मामले में। बात फैल गई कि कंपनियों द्वारा जमा राशियां निकालने की पृष्ठभूमि में बैंक को अपनी बांड होल्डिंग्स का हिस्सा लगभग 2 अरब अमेरिकी डॉलर के नुकसान पर बेचना पड़ा। तब इस बात की व्यावहारिकता पर सवाल उठे और अंततः एक ऐसी धारणा बन गई जिसके बारे में कोई सोचना नहीं चाहता था... कि बैंक भागने वाला है।

हालांकि अमेरिका के वेस्ट कोस्ट में जो हुआ था, उसका वर्ष 2008 के वित्तीय संकट से कोई लेना-देना नहीं था लेकिन समानता की लकीरें दिमाग में उभर चुकी थीं। इस बार अंतर यह है कि ओवल ऑफिस में बैठे व्यक्ति के नेतृत्व में प्रशासन ने पूंजीवाद पर व्याख्यान देने और बैंकिंग उद्योग को संकट से निकालने के रास्ते सुझाने में समय नहीं गंवाया। प्रशासन ने तत्परता बरती। राष्ट्रपति ने दो काम तुरंत प्रभाव से किए। पहला यह कि घबराए लोगों को आश्वस्त किया कि उनकी जमापूंजी सुरक्षित है और दूसरी तरफ संकटग्रस्त बैंकिंग संस्थानों को उबारने के लिए प्रयास किए। लेकिन वित्तीय और बैंकिंग संकट SVB के साथ ही नहीं रुका। बांड इत्यादि में निवेश करने वाले लोगों और संस्थानों में भारी हलचल पैदा हो गई।

पहले न्यूयॉर्क का सिग्नेचर बैंक हिला। फिर जैसे ही स्टॉक मूल्यों में गिरावट शुरू हुई, फर्स्ट रिपब्लिक बैंक और वेस्टर्न एलायंस बैनकॉर्प भी डोलने लगे। वित्तीय भूकंप के झटके क्रेडिट सुइस के माध्यम से यूरोप तक जा पहुंचे। निवेशक भय और विस्मय के साथ देख रहे थे कि छोटी और मध्यम दर्जे की संस्थाएं ही नहीं, इस आर्थिक संकट से बैंक ऑफ अमेरिका, वेल्स फारगो और जेपी मॉर्गन जैसे पारंपरिक और दिग्गज संस्थानों पर भी आंच आ रही थी। ऐसे में यूरोप और विस्तारित रूप से पश्चिमी दुनिया ने स्विस अधिकारियों के क्रेडिट सुइस हस्तक्षेप पर राहत की सांस ली होगी।

इसी तरह फेड की गारंटी से अलग, अमेरिका में प्रमुख बैंकिंग और वित्तीय संस्थान वैश्विक वित्तीय संकट के डर को दूर करने और असफल बैंकों को बचाने के लिए आगे आए। बहरहाल, इस पूरे प्रकरण में एक बात तो यह उभरकर आई कि बैंकिंग और वित्तीय प्रणालियों ने लगभग 15 साल पहले आए संकट से कुछ सबक सीखे हैं। लचीलेपन का एक तत्व उभरा है और यह विश्वास भी बना है कि वर्तमान 'कंपनी' का 15 साल पुरानी 'मुसीबत' से कोई लेना-देना नहीं है। अलबत्ता, एक अलग लेकिन संबंधित संदर्भ में अर्थशास्त्रियों ने यह विचार करना शुरू कर दिया है कि वर्तमान संकट 2023 और उसके बाद अमेरिका और विश्व के आर्थिक विकास को किस हद तक प्रभावित करेगा। किंतु वैश्वीकृत परिदृश्य में SVB के मामले को एक स्थानीय घटना के रूप में देखना मुश्किल है या यह मान लेना कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दर बढ़ती मुद्रास्फीति को पूरा करने के लिए बढ़ती हैं क्योंकि इसका कोई व्यापक प्रभाव नहीं है।

भारत सहित एशियाई प्राधिकरण, बाजार और बैंकिंग संस्थान इस घटनाक्रम पर गहरी नजर बनाए हुए हैं। जिस सवाल पर पहले विचार करने की आवश्यकता है, वह यह है कि क्या सिलिकॉन वैली बैंक के पतन का संबंध केवल बॉन्ड के लिए उनके अति जोखिम से था या कोई अन्य गहरा कारण है जो बैंकिंग उद्योग को झकझोर देता है। जब तक कि पूरे घटनाक्रम का खुलासा नहीं हो जाता, स्थितियां सहज होने वाली नहीं हैं। जमाकर्ताओं को आश्वस्त कर देना कि उनका पैसा बीमा सीमा या उससे कुछ आगे तक सुरक्षित है, एक अस्थायी सांत्वना है।

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