एक धमकी, एक डरावनी याद और एक निंदनीय चुप्पी

पिछले सप्ताह भारत में लोग स्वाभाविक रूप से उस समय चिंतित हो उठे जब प्रतिबंधित सिख फॉर जस्टिस (SFJ) के नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू का एक वीडियो मैसेज सोशल मीडिया पर दिखाई दिया। संदेश में पन्नू ने सिख समुदाय के लोगों से 19 नवंबर को एयर इंडिया से हवाई यात्रा न करने को कहा था। इसके बाद उसने कहा कि एयरलाइन की 'नाकाबंदी' होगी और अगर कोई व्यक्ति एयर इंडिया से उस दिन यात्रा करेगा तो वह अपनी जान को खतरे में डालेगा। संदेश या संदेशवाहक की सत्यता की पुष्टि तो अभी तक नहीं हुई है अलबत्ता खतरे की घंटी बज गई है। अपेक्षित भी है।

गौरतलब है कि 19 नवंबर को भारत की दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती है जिनकी अक्तूबर 1984 में बेरहमी से गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। यही नहीं 19 नवंबर को भारत में चल रहे विश्व कप क्रिकेट का फाइनल अहमदाबाद शहर में खेला जाएगा। वीडियो संदेश में उस फाइनल को 'वर्ल्ड टेरर कप' कहा गया है। बेशक, हरेक आतंकी धमकी को सावधानी से लिया जाना चाहिए। इस तरह के संदेश को किसी पागल व्यक्ति की ओर से आने वाली धमकी के रूप में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और न ही सुरक्षा एजेंसिंयों को दैनिक आधार पर प्राप्त होने वाले क्रैंक कॉल और संदेशों की सूची में जोड़कर इसे उपेक्षित करना चाहिए। वर्तमान संदर्भ में SFJ और उसके नेता को भारत में उग्रवादी और आतंकवादी नामित किया गया है और कनाडा में हाल की खालिस्तानी सक्रियता और हिंसा के संदर्भ में SFJ ने सभी हिंदू-कनाडाई लोगों को देश छोड़ने के लिए भी कहा था। ऐसा न करने पर उनको जान की धमकी दी थी।

एयर इंडिया सप्ताह में कई बार टोरंटो और वैंकूवर से नई दिल्ली के लिए उड़ान भरती है। इस वीडियो को भारत, कनाडा और अन्य लोगों द्वारा गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि इसका एक भयावह इतिहास है। जून, 1985 का कनिष्क विमान हादसा एक भयावह इतिहास है। सिख चरमपंथियों द्वारा विमान में किये गये धमाके में कोई नहीं बचा था। सभी 329 लोग मौत की आगोश में चले गये थे। बहरहाल, इस प्रकरण में हैरान करने वाली और निंदनीय बात यह है कि 'आतंकी धमकी' के बाद कनाडा और पश्चिम के अन्य देश मौन हैं। अगर अल कायदा, आईएसआईएस या किसी अन्य आतंकवादी संगठन का कोई वीडियो किसी यात्री विमान को मार गिराने या उसमें धमाका करने की बात कहता तो सब पागल हो जाते। हवाई अड्डों पर सैनिकों के शिविर लग जाते। सुरक्षा एजेंसियां हड़कंप मचा देतीं। सुरक्षा के नाम पर न जाने क्या-क्या हो चुका होता। दुखद और विडंबना की एक बात यह भी है कि सितंबर 11, 2001 या 9/11 ने साबित कर दिया है कि सुरक्षा एजेंसियों की तमाम मुस्तैदी के बाद भी आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब हो जाते हैं। कनाडा के एक असत्यापित वीडियो संदेश के साथ भी जो आक्रोश होना चाहिए था वह नई दिल्ली और ओटावा के बीच वर्तमान स्थिति पर बहुत कुछ कहता है।

यह नौबत इसलिए आई है क्योंकि प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपनी संसद में एक कनाडाई नागरिक की हत्या में भारत की कथित संलिप्तता की बात कही थी। उस कनाडाई नागरिक को भारत आतंकी घोषित कर चुका है। दुनिया जानती है कि कनाडा तेजी से उग्रवाद का केंद्र बनता जा रहा है। खासकर भारत विरोधी उग्रवाद का। स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के नाम पर SFJ या उसके नेताओं के साथ समझौता करने में असफल होना यकीनन घृणित है। इससे भी बुरी बात यह है कि नेता चंद वोटों की खातिर इन चरमपंथियों को गले लगाते हैं।