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विशेष लेख: वैश्विक अर्थव्यवस्था का हाल और भारत की चाल

बिना किसी गलती के प्रताड़ना के लिए मजबूर इन अभागे लोगों की दुर्दशा पर केवल जुबानी जुगाली करना विकास लक्ष्यों और आकांक्षाओं की तमाम ऊंची-ऊंची बातों की खिल्ली उड़ाना ही होगा।

ऐसा साल में दो बार देखने को मिला है जब वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंकों के प्रमुख आर्थिक चुनौतियों मद्देनजर और दुनिया की बेहतरी के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक (WB) के अफसर-अधिकारियो से रूबरू हुए। और जैसा कि पिछले कुछ वर्षों में हो रहा है IMF ने अपने आकलन में पाया कि वैश्विक आर्थिक सुधार अपनी राह पर रहे और इस साल विकास दर ने अपना निचला स्तर छोड़ा ताकि अगले साल कुछ बढ़ सके। इस वर्ष विकास दर 2.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो 2024 में मामूली बढ़त के साथ 3 प्रतिशत हो जाएगी।

IMF के मुख्य अर्थशास्त्री पियरे-ओलिवर गौरिनचास ने निरीक्षण को मजबूत करने की पूर्ण अनिवार्यता को रेखांकित करते हुए कहा कि यह (विकास दर) 'पहले से कहीं अधिक है किंतु नीति नियंताओं को एक स्थिर रुख तथा स्पष्ट संचार' की आवश्यकता है। IMF के विश्व आर्थिक नजरिये ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की वर्तमान और भविष्य की स्थिति के लिए कई कारकों पर प्रकाश डाला है। हालांकि मुद्रास्फीति में गिरावट आई है क्योंकि केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में वृद्धि की है और खाद्य तथा ऊर्जा की कीमतों में कमी आई है लेकिन कई अर्थव्यवस्थाओं में श्रम बाजारों के साथ अंतर्निहित मूल्य दबाव अस्थिर साबित हो रहे हैं।

नीतिगत दरों में तेजी से वृद्धि के नकारात्मक पहलू स्पष्ट हो रहे हैं, क्योंकि बैंकिंग क्षेत्र की कमजोरियां केंद्र में आ गई हैं और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों सहित व्यापक वित्तीय क्षेत्र में 'संक्रमण' की आशंका बढ़ गई है। ऐसे में नई चुनौतियों का जवाब देने की क्षमताएं सीमित हो गई हैं। हालांकि IMF ने उल्लेख नहीं किया है किंतु अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था यूक्रेन में जारी रूसी युद्ध के नकारात्मक पहलुओं से काफी हद तक अवगत थी। इन हालात में भू-राजनीतिक तनाव वैश्विक आर्थिक विकास की अनिश्चितताओं के लिए काफी हद तक जिम्मेदार माने जा सकते हैं। इसमें कोविड-19 के प्रहार को शामिल कर लें तो हमारे पास विकासशील और अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं की एक तस्वीर है जो लगातार नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है।

वास्तव में भारत जैसी अपेक्षाकृत मजबूत प्रदर्शन करने वाली अर्थव्यवस्था के 2023-24 में 5.9 प्रतिशत की दर से बढ़ने या इस साल की शुरुआत से 0.2 प्रतिशत कम होने का अनुमान लगाया गया है लेकिन फिर भी भारतीय रिजर्व बैंक के 6.5 प्रतिशत के अनुमान से यह बहुत कम है। IMF ने सीधे शब्दों में चेतावनी दी है कि वित्तीय प्रणाली में उथल-पुथल विकास को नुकसान पहुंचाएगी। कोष का मानना है कि वित्तीय बाजार की अस्थिरता में वृद्धि के चलते दुनिया भर में आर्थिक दृष्टिकोण पर छायी कोहरे की परत घनी हो गई है। फिर भी वैश्विक आर्थिक विकास के भविष्य की चर्चाओं के बीच IMF और WB जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए क्या कर सकती हैं।

वैश्विक नेताओं के लिए लोगों के एक नए समूह पर ध्यान देने की भी तत्काल आवश्यकता है। करीब 10 करोड़ लोग राजनीतिक, आर्थिक और अन्य संघर्षों के कारण या तो अपने ही देशों में विस्थापित हो गए हैं या दुनिया भर में मजबूर होकर हाशिये पर चले गए हैं और कई मामलों में शिक्षा जैसे बुनियादी अधिकारों से वंचित हैं। बिना किसी गलती के प्रताड़ना के लिए मजबूर इन अभागे लोगों की दुर्दशा पर केवल जुबानी जुगाली करना विकास लक्ष्यों और आकांक्षाओं की तमाम ऊंची-ऊंची बातों की खिल्ली उड़ाना ही होगा।

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