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विशेष लेख: मोदी की अमेरिका यात्रा और सियासी चर्चाओं का दौर

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगले महीने अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले हैं। बाइडेन और मोदी इस बात को बखूबी जानते हैं कि हिंद प्रशांत क्षेत्र के लिए मिलकर काम करना अमेरिका और भारत दोनों के सर्वोत्तम हित में है।

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

बाइडेन प्रशासन और भारत के विदेश मंत्रालय ने आखिरकार वह घोषणा आधिकारिक तौर पर कर दी है जिसके बारे में कुछ समय से बात चल रही थी। तो यह तय हुआ कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राज्य अमेरिका की राजकीय यात्रा पर पर जाएंगे। यात्रा का समापन 22 जून को व्हाइट हाउस में भोज के साथ होगा। यह प्रधानमंत्री की अमेरिका की छठी यात्रा है लेकिन 14 साल के अंतराल के बाद किसी भारतीय नेता की दूसरी 'राजकीय यात्रा' है। इस बार इस यात्रा के एजेंडे में वाशिंगटन एकमात्र शहर नहीं है।

मोदी न्यूयॉर्क जाएंगे और शिकागो में भारतीय-अमेरिकी समुदाय की एक बड़ी सभा को संबोधित करेंगे। मई और जून के महीनों में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय एजेंडे को एशिया प्रशांत और उत्तरी अमेरिका में ले जाने के लिहाज से भारतीय प्रधानमंत्री का यह राजनयिक कार्यक्रम फिलहाल तो खासा व्यस्त दिखाई देता है। इस महीने प्रधानमंत्री मोदी दो अहम यात्राओं पर अहम मकसदों से यात्रा करने वाले हैं। पहले वह हिरोशिमा, जापान जाएंगे जहां G7 शिखर सम्मेलन के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया है और फिर ऑस्ट्रेलिया में क्वाड नेताओं के तीसरे एकमात्र व्यक्तिगत शिखर सम्मेलन के लिए उन्हे सिडनी जाना है। इन दोनों यात्राओं में मोदी एक बहुपक्षीय साझेदारी को मजबूत करने के अलावा हिंद प्रशांत क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण देशों के साथ भारत के संबंधों का विस्तार करने के लिए उत्सुक होंगे जो केवल समुद्री मुद्दों से संबंधित नहीं है बल्कि खेल के नियमों का पालन करने की दृष्टि से भी अहम है।

एक रणनीतिक अर्थ में हिंद प्रशांत क्षेत्र कुछ तनावपूर्ण हालात देख रहा है जिसमें पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना न केवल दक्षिण चीन सागर में एक आक्रामक मुद्रा में दिखाई दे रहा है बल्कि आम तौर पर अन्य क्षेत्रों में भी अपना रास्ता बनाना चाहता है। कहने को सिरदर्दी के लिए ड्रेगन की यह कदमताल ही काफी नहीं थी, उस पर उत्तर कोरिया ने आफत मचा रखी है। उसकी परमाणु धमकियों ने दक्षिण कोरिया के साथ ही पूर्वी एशिया में भी माहौल को जटिल बना दिया है। इलाके में सक्रिय भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे प्रमुख 'खिलाड़ियों' के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है कि वे बीजिंग के सैन्य नियंत्रण से परे नीतियों और रणनीतियों को दुरुस्त करें। जहां तक भारत और अमेरिका की बात है दोनों को लेकर हमेशा ही कुछ न कुछ ऐसा होता रहता है जो चर्चा का सबब बनता है और यदा-कदा आकर्षण का केंद्र भी। ऐसा खासकर तब होता है जब दोनों देशों के शीर्ष नेता एक-दूसरे से बात करते हैं फिर कहीं किसी मंच पर मिलते हैं। और अगले महीने तो मोदी और माइडेन अमेरिका में रूबरू होने को हैं। यह अलग है कि उससे पहले भी दोनों नेता अन्य मंच पर आमने-सामने होंगे। लेकिन दोनों ही नेता यह भी जानते हैं कि आपसी रिश्ते की ताकत माहौल से परे और दो राजधानियों में सरकारों के बावजूद बंधनों को मजबूत और अधिक स्थिर बनाने वाली बारीकियों में निहित है। बेशक, बाइडेन और मोदी इस बात को बखूबी जानते हैं कि हिंद प्रशांत क्षेत्र के लिए मिलकर काम करना अमेरिका और भारत दोनों के सर्वोत्तम हित में है।

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