अप्रवासियों के टूटे सपनों को जोड़ने की अनोखी कहानी है 'स्टार्च'
15 मिनट से कम समय में तीन पीढ़ियों के एक साथ आने की कहानी आप कैसे बता सकते हैं? ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में जन्मे फिल्मकार अजय विश्वनाथ ने इस मुश्किल काम को साकार कर दिखाया है। उन्होंने एक नए देश में खुद को स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे एक आप्रवासी परिवार की पीड़ा को बेहद खूबसूरती के साथ पर्दे पर उतारा है।
तमिल फिल्म 'स्टार्च' ने पिछले महीने वैंकूवर इंटरनेशनल साउथ एशियन फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म-2023 का पुरस्कार जीता था। विश्वनाथ को उनकी पटकथा के लिए दो नामांकन भी मिले हैं।
'स्टार्च' में एक अहम भूमिका निभाने वाली विनीता सूद बेलानी थिएटर की दुनिया में जाना पहचाना नाम हैं। बेलानी सैन फ्रांसिस्को खाड़ी इलाके में स्थित थिएटर ट्रूप इनैक्टे की संस्थापक हैं। यह ट्रूप पूरे अमेरिका में दक्षिण एशियाई केंद्रित नाटकों का मंचन करती है।
विश्वनाथ और बेलानी ने न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ एक साक्षात्कार में कई मुद्दों पर चर्चा की। पेश है, बातचीत के कुछ अंश-
एनआईए: अजय आपको इस फिल्म का आइडिया कैसे आया?
अजय: एक दिन मैं पुराने वीएचएस टेप को डिजिटाइज़ करने की कोशिश कर रहा था। उसकी फुटेज को देखकर मुझे उन कहानियों की याद आ गई, जो उन्होंने 90 के दशक की शुरुआत में पहली बार ऑस्ट्रेलिया जाने को लेकर मुझे बताई थीं। इनमें मेरी मां के बारे में दो कहानियां वास्तव में अद्भुत हैं।
जब वे ऑस्ट्रेलिया गए थे तब उन्हें एक सस्ते से घर में रहना पड़ा था। उनके पास कार भी नहीं थी। मेरे पिता बताया करते थे कि किस तरह मेरी मां किराने की दुकान सामान चुराने के लिए दौड़ लगाया करती थीं। लेकिन अगर आप अब मेरी मां से मिलेंगे तो वह उस तरह की इंसान बिल्कुल नहीं लगेंगी।
दूसरी कहानी जो मुझे याद थी, वह उस दौर के बारे में थी, जब आसपास जाने के लिए हमें पर्याप्त भोजन नहीं मिलता था। मेरी मां यह ध्यान रखती थीं कि पापा और मेरा पेट भर जाए। इसके लिए वह खुद चावल का पानी पीकर सो जाती थीं।
यह बहुत ही दिलचस्प दृश्य थे, जिनके इर्दगिर्द एक फिल्म की कहानी लिखना और उसे लोगों को बताना मुझे अच्छा लगा। इसका उद्देश्य यही था कि लोगों को बताया जाए कि एक नई जगह पर जाने के लिए लोगों को कैसे कैसे बलिदान देने पड़ते हैं।
विनीता: इस फिल्म की जिस बात ने मुझे प्रभावित किया, वह यह कि कोई इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी नैतिक दुविधा को संवेदनशीलता के साथ कैसे संभाल सकता है। क्या आप अपने परिवार को पहले रखेंगे या फिर आप अपनी नैतिकता को आगे रखेंगे? इसी बात को इस फिल्म में बेहद खूबसूरती के साथ बुना गया है। इसे इतनी संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया गया है कि फिल्म के अंत में हर किसी के आंसू निकल पड़ते हैं।
एनआईए: इस फिल्म की एक सबसे खूबसूरत चीज वो अंतरंगता है जो सभी पात्र इतनी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद एक-दूसरे के साथ निभाते हैं। आपने यह कैसे मुमकिन किया?
अजय: मुझे लगता है कि इसका बड़ा श्रेय उन कलाकारों को जाता है जिन्होंने बहुत खूबसूरती के साथ एक-दूसरे से और पात्रों के साथ संबंध बनाए। मुझे एक माहौल बनाना था, जिसमें वे स्वतंत्र महसूस कर सकें और एक-दूसरे के करीब महसूस कर सकें।
एनआईए: क्या आपको उम्मीद है कि दर्शक आपकी फिल्म को पसंद करेंगे?
विनीता: मुझे पूरी उम्मीद है कि दर्शक इसे देखेंगे क्योंकि इसकी सभी कहानियां ऐसी हैं जो हर प्रवासी के साथ कभी न कभी घटित हुई होंगी। इसकी कहानी सार्वभौमिक है।
मुझे अच्छा लगेगा अगर लोग दूसरों से बातचीत करते समय थोड़ी करुणा दिखाएं क्योंकि हम नहीं जानते कि वे लोग किन परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। अगर हम ये सोचना बंद कर दें कि लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं और थोड़ी करुणा के साथ इस पर विचार करते हुए काम करें तो मुझे लगता है कि हम एक बेहतर दुनिया बना लेंगे।
अजय: मुझे लगता है कि इस तरह की फिल्म दिखाती है कि रोजमर्रा की जिंदगी में छोटे-छोटे पल आपके पूरे जीवन को बदलने वाले महत्वपूर्ण पल साबित हो सकते हैं। थोड़ी सी करुणा और समझदारी एक नई जगह पर आपके पूरे परिवार की जिंदगी बदल सकती है।