कहानी 85 साल की मंजू शेफ की, इनके गुजराती जायकों ने लंदन में हंगामा मचा रखा है

85 साल की उम्र की सोचकर सबसे पहला ख्याल क्या आता है? एकाकी और आराम फरमाने की जिंदगी! लेकिन ऐसा सबके लिए सच नहीं है। किसी ने सच ही कहा है कि जो टायर्ड नहीं है वो कभी भी रिटायर नहीं है। मतलब जो थका नहीं जो रुका नहीं वो कभी सेवानिवृत्त नहीं होता। ऐसी ही मिसाल हैं ब्रिटेन में लोगों तक गुजराती जायके पहुंचाने वाली शेफ मंजू।

मां की सलाह काम आई

गुजराती रिवाज़ के अनुसार किसी भी महिला के पहले बच्चे का जन्म उसकी मां के यहां होता है। इसी रिवाज़ का पालन करते हुए 1936 में मंजू की मां, अपने बच्चे के जन्म के लिए युगांडा से गुजरात आई थीं। गुजरात में मंजू का जन्म हुआ और फिर वह अपने माता-पिता के साथ युगांडा वापस चली गईं।

मंजू जब केवल 12 वर्ष की थीं, तो उनके पिता की मृत्यु हो गई। इस घटना ने उन्हें झंकझोर कर रख दिया। चंचल और मासूमियत से भरपूर मंजू पर जल्द ही जिम्मेदारियों का बोझ आ गया। उन्हें शुरुआत से ही खाना बनाना काफी पसंद था। पिता की मौत के बाद, घर चलाने की ज़िम्मेदारी उन पर ही थी। ऐसे में उन्होंने खाना बनाकर पैसे कमाने और घर चलाने का फैसला किया।
अपनी मां की सलाह से बनाए गए व्यंजनों ने उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। 14 साल की उम्र में वह हर दिन करीब 35 टिफिन बनाकर तैयार करती थीं। उनके हाथों का बना खाना युगांडा के ऑफिस जाने वाले कर्मचारियों को काफी पंसद आता था।

वहां के लोगों ने चना दाल का स्वाद चखा और खूब सराहा। इस बीच मंजू का गुजराती व्यंजनों के स्वाद से रिश्ता और गहरा होता चला गया। धीरे-धीरे समय बीतता गया। मंजू की शादी हुई और उनके दो बेटे, नईमेश और जैमिन हुए। मंजू के दूसरे बेटे के जन्म के दो साल बाद, 1972 में राष्ट्रपति ईदी अमीन ने युगांडा पर अधिकार कर लिया। वह स्वभाव से एक तानाशाह था। उसने एक कानून पारित किया और एशियाई सहित कई अन्य परिवारों को निष्कासित कर दिया गया।

छोड़ना पड़ा अपना देश

मंजू के पास युगांडा छोड़ बाहर जाने के लिए काफी कम विकल्प थे। यूके में उनके एक रिश्तेदार थे, जो उनकी मदद कर सकते थे। सबसे सुरक्षित विकल्प देखते हुए मंजू, यूनाइटेड किंगडम आ गईं।

दो युवा लड़कों और हाथों में केवल 12 पाउंड के साथ, मंजु और उनका परिवार जानता था कि कठिन समय उनका इंतजार कर रहा है। कुछ समय बाद, मंजू को एक कारखाने में काम मिला, जहां बिजली के प्लग सॉकेट बनाए जाते थे। इस नौकरी में वह 65 साल की उम्र में रिटायर होने तक रहीं।

लेकिन मंजू के अंदर अब भी कहीं न कहीं खाना पकाने का शौक़ जिंदा था। वह अक्सर अपने लड़कों को प्रसिद्ध कढ़ी, आलू की सब्जी, दाल ढोकली, उंधू, थेपला, खांडवी और ऐसे ही अन्य स्वादिष्ट व्यंजन खिलाया करती थीं।

यूके में मंजू और उनके परिवार का शुरुआती जीवन काफी कठिन रहा। उन्हें कई बार अपना घर बदलना पड़ता था। ऐसा इसलिए क्योंकि मंजू, लोगों के घरों में किराए पर कमरे लेती थीं। काफी समय तक ऐसा ही चलता रहा। साल 1979 में उन्होंने लंदन में खुद की जगह खरीदी।

मां का सपना बेटों ने साकार किया

मंजू ने घर खरीदा लेकिन अब भी उनके मन में अपना रेस्तरां खोलने का सपना दबा हुआ था। इसे उनके दोनों बेटे नैमेश और जैमिन ने साकार किया। उन्होंने 3 साल तक अपनी मां के रेस्तरां के लिए मुफीद जगह खोजी। तीन साल की तलाश के बाद, 2017 में, मंजू के दोनों बेटों को आखिरकार एक ऐसी जगह मिल गई, जहां उन्हें लगा कि उनकी मां अपने खाना पकाने का बिज़नेस शुरू कर सकती हैं। उन्होंने अपने बिज़नेस की बचत से ब्राइटन में जगह खरीदी।
उस समय मंजू की उम्र 80 साल थी, लेकिन उनके जीवन भर का सपना आखिरकार सच हो गया था। वह अपने जीवन के अगले अध्याय को शुरू करने के लिए तैयार थीं। ऐसे सफर शुरू हुआ शेफ मंजू के रेस्तरा मंजूज़ का।

अपने दोनों बेटों के साथ शेफ मंजू (फोटोःमजूज़ के फेसबुक पेज से )

ब्रिटेन में हैं तो ऐसे पहुंचे मंजूज़

अगर आप लंदन में गुजराती रेस्टोरेंट ‘मंजूज़’ जाने की सोच रहे हैं, तो पहले से ही टेबल बुक करा लेना अक्लमंदी होगी। यह रेस्तरां गुरुवार से शनिवार तक दोपहर के भोजन के लिए दोपहर 12 बजे से दोपहर 2 बजे तक (केवल शनिवार को) और रात के खाने के लिए शाम 6 बजे से 10 बजे तक चलता है। यहां एक दिन में करीब 48 लोग आते हैं। एक ग्रूप में ज्यादा से ज्यादा चार मेहमान आते हैं।

इस रेस्तरां में आप कभी भी चले जाएं, मेन्यू में कम से कम 12 व्यंजन तो ज़रूर होंगे, जो मौसमी सब्जियों के आधार पर लगातार बदलते रहते हैं। यहां हर डिश की कीमत लगभग 5 पाउंड है। मंजू और उनके बेटों का कहना है कि 2017 में जब से रेस्तरां ने जनता के लिए अपने दरवाजे खोले हैं, लोगों की प्रतिक्रिया शानदार रही है।