2023 : साल, जो था ही नहीं...

कमोडोर आरएस वासन

2023 को अगर पलटकर देखें तो हर कोई यही कहेगा कि यह पूरा साल हर मायने में चुनौतीपूर्ण ही रहा है। हालांकि जी20 जैसी कुछ सफलताएं मिलीं लेकिन वे बहुत कम थीं। बीते साल को योम किप्पुर युद्ध की वर्षगांठ पर हमास के भीषण हमले और इजरायल के जवाबी हमलों के लिए याद किया जाएगा जिसकी वजह से ऐसा युद्ध छिड़ गया है, जो अभी तक जारी है।

कमोडोर आरएस वासन

संघर्ष विराम की तमाम अपीलों के बावजूद इजरायल स्पष्ट रूप से कह रहा है कि वह हमास को खत्म करके ही दम लेगा। इतिहास गवाह है कि कोई भी आतंकवाद या सभी अपराधियों को जड़ से खत्म नहीं कर सका है, भले ही अभियान कितना भी तीव्र और निरंतर क्यों न हो। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि गाजा पट्टी में नागरिकों को दोनों तरफ से हुईं अनुचित ज्यादतियों का भारी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। हालांकि इस युद्ध को शुरू करने के लिए हमास को दोषी ठहराया जाना गलत नहीं है। लेकिन अब समय आ गया है कि द्विराष्ट्र के समाधान को स्वीकार किया जाए और लागू किया जाए। गाजा पट्टी में चल रहा युद्ध इतना भयानक है कि इसके आगे रूस-यूक्रेन युद्ध या फिर भारत-चीन के बीच सीमा पर गतिरोध भी तुलनात्मक रूप से फीका नजर आता है।

ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों द्वारा व्यापारिक जहाजों पर ड्रोन और मिसाइल हमले शुरु किए जाने से समुद्री क्षेत्र में मामला और जटिल हो गया है। लाल सागर से गुजरने वाले जहाजों को समुद्री और हवाई खतरों का सामना करना पड़ रहा है। हाल की रिपोर्ट बताती हैं कि इन हमलों से बचने के लिए क्षेत्र से लगभग 35 अरब मूल्य के सामानों को डायवर्ट किया जा रहा है। इसका नतीजा ये होगा कि परिवहन और बीमा लागत में वृद्धि होगी। तीन साल पहले रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ने के साथ शुरू हुए खाद्य, ऊर्जा एवं राजनीतिक संकट में कमी आने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं, वहीं वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर इस नए संकट ने हालात को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया है। हाल की ये घटनाएं सभी देशों के लिए बड़ी चुनौती की तरह हैं। अमेरिका और अन्य पश्चिमी राष्ट्र हालाक पर काबू पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, ऐसे में भारत के लिए भी यह महत्वपूर्ण हो गया है कि वह हिंद महासागर में समय की कसौटी पर खरी उतरी अपनी क्षमताओं और इरादों का उपयोग करके इन खतरों का मुकाबला करे।

जहां तक भारत को लेकर 2023 का सवाल है तो चंद्रयान के सफल प्रक्षेपण ने भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के कौशल को दुनिया में स्थापित किया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने कमाल करते हुए चंद्रमान पर एक ऐसे क्षेत्र में सफल लैंडिंग कराई है, जहां अभी तक कोई अन्य देश नहीं उतरा। भारत को दूसरा मौका जी-20 के नेतृत्व के रूप में मिला, जिसका इस्तेमाल मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने अपनी बहुमुखी प्रतिभा को दुनिया के सामने पेश करने और यह सुनिश्चित करने के लिए किया कि अफ्रीका को ग्लोबल साउथ की समावेशी आवाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए साथ लाया जाए।

भारत के आसपास के समुद्री इलाकों में भी इस साल काफी हलचल हुई। मालदीव में चुनावों के बाद जहां चीन समर्थक नई सरकार आई। इससे भारत के सामने एक ऐसे पड़ोसी से निपटने की चुनौतियां हैं, जिसने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों के बावजूद भारत के साथ समय की कसौटी पर खरे उतरे समीकरणों के खिलाफ जाकर काम किया है। मालदीव से भारतीय सुरक्षा बलों को बाहर करने के नई सरकार के दृढ़ प्रयासों के बीच संतुलन कायम करने की चुनौती भी सामने है।

पीएलए के दो शोध जहाजों के श्रीलंका में बंदरगाहों पर डेरा डालने के प्रयासों ने भी इस साल मीडिया में सुर्खियां बटोरीं। पिछले दरवाजे से हुई तमाम चर्चाओं के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की सुरक्षा चिंताओं को लेकर सचेत श्रीलंका ने अनुसंधान के उद्देश्यों के लिए श्रीलंकाई जल क्षेत्र में आ रहे ऐसे जहाजों के प्रवेश को रोकने के लिए कानून पारित करने के लिए कड़ी मेहनत की है। शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन के लिए यह एक बुरा साल साबित हुआ है, जिसने आर्थिक मंदी, बेरोजगारी में वृद्धि, विरोध प्रदर्शनों के कारण शून्य कोविड नीति पर यू-टर्न और कई देशों की प्रतिक्रिया के कारण बीआरआई योजनाओं में महत्वपूर्ण कटौती का सामना किया है। इटली के बीआरआई से बाहर निकलने के बाद कई और राष्ट्र इस परियोजना का गंभीर मूल्यांकन और जांच करेंगे। हालांकि चीन भी आलोचना को लेकर सावधान है और उसने तीसरे बेल्ट एंड रोड फोरम का आयोजन किया, लेकिन वह बीआरआई के कई प्रावधानों की समीक्षा करने पर मजबूर होगा, खासकर ऋणों के पुनर्भुगतान की शर्तों और स्थानीय आबादी के लिए अवसर बढ़ाने पर जो कि अब तक उत्पादक रोजगार के लिए किसी अच्छे अवसर से वंचित रहे हैं।

भारतीय सेना में आईएनएस विक्रांत युद्धपोत के सफलतापूर्वक शामिल होने और परिचालन कार्य पूरा होने के बाद ऐसा लगता है कि तीसरा विमानवाहक पोत अब ज्यादा दूर नहीं है, हालांकि इसके बड़े आकार का परमाणु वाहक होने की अटकलों पर फिलहाल विराम लग गया है।

उथल-पुथल भरा साल खत्म होने के साथ ही दुनिया अमेरिका, भारत और बांग्लादेश के चुनावों के नतीजों की तैयारी कर रही है। इन चुनावों के नतीजे दुनिया भर के राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक समीकरणों को प्रभावित करेंगे।

आइए 2023 को अलविदा कहते हैं और 2024 का हार्दिक स्वागत करते हैं। उम्मीद है कि यह साल एक ऐसी दुनिया की उम्मीद बढ़ाएगा, जहां मिलजुलकर चुनौतियों का मजबूती से सामना किया जा सके और सद्भाव के साथ रहा जा सके।

(लेखक चेन्नई सेंटर फॉर चाइना स्टडीज के महानिदेशक हैं)
क्षेत्रीय निदेशक एनएमएफ (तमिलनाडु)