रूसी आक्रमण के बाद यूक्रेन से वापस लौटे भारतीय छात्रों की पढ़ाई को लेकर अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है। दो महीने बाद भी भारतीय छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंता में हैं। कुछ भारतीय छात्र चाहते हैं कि भारत सरकार उन्हें एक विकल्प दे जबकि कुछ को उम्मीद है कि युद्ध खत्म होने के बाद वह यूक्रेन अपनी उच्च शिक्षा के लिए वापस लौट जाएंगे। मेडिकल के ये छात्र एक महीने से अधिक समय से ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले रहे हैं लेकिन प्रैक्टिकल न होने से उनका प्रशिक्षण अधूरा है और यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है।
छात्रों की ऑनलाइन सेमेस्टर-एंड परीक्षा मई-जून में निर्धारित हैं और उन्हें उम्मीद है कि सितंबर में उनके नए सेमेस्टर की शुरुआत तक स्थिति बेहतर हो जाएगी। मौजूदा वक्त में महाराष्ट्र में बसे यूक्रेन से लौटे छात्रों का दावा है कि महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज (MUHS) द्वारा बनाया गया ऑनलाइन मॉड्यूल बहुत मददगार नहीं है। उनका कहना है कि वे यूक्रेन में अपने संबंधित विश्वविद्यालयों से वैसे भी ऑनलाइन लैक्चर ले रहे हैं। बता दें कि यूक्रेन से लौटे 18,000 भारतीय छात्रों में से लगभग 2,000 महाराष्ट्र से हैं। राज्य से करीब 1,200 ने MUHS से शिक्षा में सहायता के लिए हस्ताक्षर किए हुए हैं। हालांकि प्रैक्टिकल न हो पाने से वह संतुष्ट नही हैं।
खार्किव मेडिकल यूनिवर्सिटी की एक छात्रा रुशौती भोगले ने मीडिया को बताया कि अगर युद्ध जल्द खत्म नहीं हुआ तो उन्हें यूक्रेन से अपनी मेडिकल की पढ़ाई छोड़नी पड़ सकती है और घर के नजदीक ही अन्य विकल्पों की तलाश करनी पड़ेगी। भोगले ने कहा वैकल्पिक रूप से हमें स्थानांतरण या नए प्रवेश के लिए यूक्रेन के पड़ोसी देशों को देखना पड़ सकता है। लेकिन यह एक महंगा विकल्प होगा। हम पहले ही यूक्रेन में अपने दाखिले पर लाखों खर्च कर चुके हैं।
नागपुर के एक अन्य छात्र रुशील मिर्जापुर ने कहा कि जब तक भारत सरकार उन्हें कोई समाधान नहीं देती तब तक उनके पास यूक्रेन में स्थिति में सुधार होने का इंतजार करना ही एकमात्र विकल्प है। हमारी शिक्षा ऑनलाइन जारी है लेकिन व्यावहारिक प्रशिक्षण बिल्कुल नहीं है। विनितसिया मेडिकल यूनिवर्सिटी के छात्र मिर्जापुर ने कहा कि हम राज्य सरकार से स्थानीय मेडिकल कॉलेजों में हमारे प्रैक्टिकल की व्यवस्था करने का लगातार अनुरोध कर रहे हैं।
ओडेसा नेशनल यूनिवर्सिटी के चौथे वर्ष के छात्र के माता-पिता ने कहा कि वह पहले ही यूक्रेन में अपनी बेटी की शिक्षा पर करीब 35-40 लाख रुपये खर्च कर चुके हैं। वहीं मुंबई में रहने वाले मेडिकल के दूसरे वर्ष के छात्र साहिल पाल ने बताया कि वह यूक्रेन के जापोरिज्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी में नामांकित हैं। सरकार अगर विकल्प दे तो मैं यूक्रेन नहीं लौटना चाहूंगा। वैसे भी हमें नहीं पता कि ऑनलाइन चिकित्सा शिक्षा मान्य होगी या नहीं।