सलमान रश्दी समेत 100 से ज्यादा लेखकों ने अभिव्यक्ति की आजादी के लिए उठाई आवाज
100 से ज्यादा अंतरर्राष्ट्रीय लेखकों और कलाकारों ने भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर देश में अभिव्यक्ति की आजादी की स्थिति पर चिंता जताई है। लेखकों के विश्वव्यापी संगठन पेन अमेरिका की पहल पर इन्होंने अपनी-अपनी राय व्यक्त की। इनके बयानों के आधार पर लेखकों के संगठन पेन अमेरिका ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से लोकतांत्रिक आदर्शों का समर्थन करने का आह्वान किया है।
अभिव्यक्ति की आजादी की वकालत करने वाले संगठन ने भारतीय लेखकों और प्रवासी भारतीयों से भारत को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए छोटे-छोटे संदेश लिखने के लिए कहा था। इस पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक सलमान रुश्दी समेत 102 लेखकों ने अपने विचार सामने रखे। इन हस्तियों में इस वर्ष की अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता गीतांजलि श्री, ज्ञान प्रकाश, नयनतारा सहगल, रोमिला थापर, राजमोहन गांधी, गणेश देवी, प्रताप भानु मेहता, अमित चौधरी, अक्षय मुकुल, रघु कर्नाड शामिल थे। इनके अलावा अनीता देसाई, अमिताभ कुमार, सुकेतु मेहता, झुम्पा लाहिरी, किरण देसाई, विजय शेषाद्री, सुजाता गिडला, प्रीति तनेजा, कार्तिका नायर, अखिल कात्याल, आंचल मल्होत्रा, याशिका दत्त जैसे कवि और लेखक भी इस संकलन का हिस्सा बने।
100+ writers from India and the Indian diaspora—including Jhumpa Lahiri, Hari Kunzru, Abraham Verghese, Manil Suri, Rajmohan Gandhi, Nayantara Sehgal, and Shobhaa De—reflect on the state of free expression in #IndiaAt75.
— PEN America (@PENamerica) August 15, 2022
Read all the contributions: https://t.co/ytJFDteIM1 pic.twitter.com/Y4j8aJddtu
14 अगस्त को राष्ट्रपति के नाम लिखे गए इस बयान की शुरुआत में कहा गया, ‘हम आपसे भारत की स्वतंत्रता की भावना में स्वतंत्र अभिव्यक्ति को बढ़ावा देने, उसकी रक्षा करने वाले लोकतांत्रिक आदर्शों का समर्थन करने और एक समावेशी, धर्मनिरपेक्ष, बहु-जातीय और धार्मिक लोकतंत्र के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को बहाल करने का आग्रह करते हैं, जहां लेखक नजरबंदी के खतरे, जांच, शारीरिक हमले या प्रतिशोध के बिना असहमति या आलोचनात्मक विचार व्यक्त कर सकें।’
संगठन के अनुसार, भारत की कई भाषाओं, समुदायों, धर्मों और जातियों के लेखकों के साथ-साथ दुनिया भर के लेखकों ने अपने-अपने विचार भेजे। इनमें कुछ स्वर आशावादी हैं तो कुछ प्रार्थनापूर्ण, कुछ व्यथित तो कुछ क्रोधित। कुछ हार की स्थिति दर्शाते हैं, कुछ आशा जगाते हैं, तो कुछ स्वर विद्रोही भी हैं। लेखकों ने राजनीतिक विचारों का एक पूरा आकाश सामने रखा है। कुछ पर असहमति हो सकती है, लेकिन वो सभी एक बात को लेकर एकमत हैं, और वो है भारतीय लोकतंत्र की स्थिति।"